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________________ तस्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग — वासुदेव कृष्ण : घट जातक ५१७ मेष को वृन्दावन में खुले छोड़ दीजिए । जो इनका वध कर दे, समझिए उसके हाथों आप की मौत है। इसके अतिरिक्त यह जान लीजिए, वह आपका शत्रु कालिय नामक नाग का दमन करेगा । उसके द्वारा पद्मोत्तर एवं चंपक नामक हाथी निहत होंगे। वह पुरुष एक दिन आपके प्राण ले लेगा ।" ज्योतिर्विद् की बात सुनकर कंस भीति के साथ-साथ अत्यन्त सावधानी तथा जागरूकता बरतने की मुद्रा में आ गया। उसने अरिष्ट वृषभ, केशी अश्व, दुर्दान्त खर और मेष को वृन्दावन में उन्मुक्त छुड़वा दिया । कंस के यहाँ मुष्टिक तथा चाणूर नामक दो बड़े शक्तिशाली, भीमकाय मल्ल थे । कंस ने उनको आज्ञापित किया- "मल्ल-विद्या के अभ्यास में निरन्तर लगे रहो, शक्ति बढ़ाते रहो, मल्ल-युद्ध के लिए तत्पर रहो, एक ऐसा ही जबर्दस्त प्रसंग बनने को है ।" राजा की आज्ञा के अनुसार दोनों मल्ल अभ्यास और शक्ति बढ़ाने में लग गये । कंस की योजना के अनुसार वृषभ, अश्व, खर तथा मेष – चारों दुर्दान्त, दुर्धर्ष, दुष्ट पशुओं ने वृन्दावन में उत्पात मचाना प्रारंभ कर दिया । उससे सभी व्रजवासी बड़े दुःखित हुए । अरिष्ट वृषभ तो मानो गोपालकों और गाय-बैलों के लिए साक्षात् काल ही था । व्रज के गोप, गोपियाँ, अन्यान्य नर-नारी सभी घबरा गये । उन्होंने बलराम तथा कृष्ण से पुकार की – "इस वृषभ के उत्पात से हमारी, गोधन की रक्षा करें ? " कृष्ण ने वृषभ की ओर देखा। उसके सामने हुंकार किया । अत्यन्त क्रोधाविष्ट होकर नथुने फुंकारता हुआ वृषभ कृष्ण के समीप पहुँच गया । वह कृष्ण को पछाड़ने हेतु अपने सींग कुछ नीचे कर वार करने को उद्यत हुआ। इतने में कृष्ण ने उसके सींग कसकर पकड़ लिये । अत्यन्त वेगवाहिनी सरिता की गति जैसे पर्वत से रुक जाती है, उसी प्रकार उस वृषभ की सारी गति, त्वरा निरुद्ध हो गई। वृषभ ने कुछ पीछे हटकर कृष्ण के टक्कर मारना चाहा, पर, कृष्ण की मजबूत पकड़ से वह छूट नहीं सका । कृष्ण ने उसकी गर्दन को नीचे की ओर जोर से झटका दिया। उसके पिछले पैर जमीन से ऊपर उठ गये, अगले घुटने आगे टिक गये । उसने दम तोड़ दिया । सभी गोप, ग्वाल-बाल, नर-नारी अरिष्ट वृषभ की मृत्यु से बहुत प्रसन्न हुए, कृष्ण के शौर्य एवं पराक्रम की प्रशंसा करने लगे । केशी नामक अश्व ने भी, जो दुर्दम शक्तिशाली और वेगवान् था, व्रज में ऊधम मचाय' । मनुष्य और गायें --- सब भयाक्रान्त हो उठे । कृष्ण ने उसको ललकारा। वह कृष्ण को रौंद डालने हेतु झपटा। कृष्ण ने अपना वज्र-सदृश हाथ उसके मुंह में डाल दिया । उसका सांस रुक गया और वह दम घुटकर मर गया । इसी प्रकार जब खर मेष उत्पात मचाने लगे, उसने उनका भी प्राणान्त कर डाला । इस प्रकार गोकुल में फैले उपद्रव शान्त हो गये । उग्रसेन की पुत्री, कंस की बहिन सत्यभामा देवांगना सदृश रूपवती थी । कंस ने यह घोषित करवाया कि उसके यहां विद्यमान शार्ङ्ग धनुष को जो चढ़ा देगा, उसके साथ सत्यभामा का पाणिग्रहण किया जायेगा । सत्य मामा : स्वयंवर सत्यभामा के सौन्दर्य को प्रशस्ति सर्वत्र व्याप्त थी । उसे पाने की लिप्सा लिये अनेक राजा, राजपुत्र आदि मथुरा में आये, पर, शाङ्ग धनुष को कोई भी चढ़ा नहीं सका । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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