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________________ ५१६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ गोपियों के साथ रास-लीला गोकुल की गोपियाँ कृष्ण की ओर बड़ी आकृष्ट रहतीं। कृष्ण से मिलने में, आलापसंलाप करने में उन्हें बड़ा सुख मिलता। वे कृष्ण को अपने मध्य रख नृत्य, गीत आदि आयोजित करतीं, रास रचातीं । वंशी-वादन में कृष्ण को अद् भुत कौशल प्राप्त था। उस द्वारा वादित वंशी का स्वर सुनकर आबालवृद्ध विमुग्ध हो उठते । कृष्ण गोकुल में सर्व प्रिय हो गया। गोपियाँ उसे गले का हार समझतीं, गोप-बालक, गोप-तरूण उसे अपना अधिनायक मानते, नन्द और यशोदा उसे अपनी आँखों का तारा समझते । न केवल नर-नारियाँ वरन् धनए तक कृष्ण को बहुत प्यार करतीं। जब-जब वह वंशी बजाता, गायें रंभाती हुई दौड़ी आतीं । यह था उसका वादन-वैशिष्ट्य, भाव-सौकुमार्य-समन्वित अद्भुत ध्वनि-माधुर्य का प्रस्तुतीकरण । निमितज्ञ द्वारा गणना : शत्रु गोकुल में कंस एक दिन घूमता हुआ अकस्मात् देवकी के पास पहुंच गया। उसने उस कृत्तनासा–नकटी बालिका को देखा, वसुदेव देवकी की पुत्री समझकर जन्मते ही जिसकी उसने नाक काट डाली थी। उसे सहसा मुनि की वह भविष्य वाणी स्मरण हो आई कि देवकी की सातवीं सन्तान द्वारा उसकी मृत्यु होगी। उसने मविष्य-द्रष्टा निमित्तज्ञ को बुलवाया तथा अपने मन की शंका के लिए उससे पूछा-निमितज्ञ ! देवकी सातवें गर्भ-सातवीं सन्तान द्वारा मेरी मृत्यु होगी, क्या यह सत्य है ?" निमित्तज्ञ-"निराकाक्ष, त्यागी, संयमी श्रमणों के वचन कभी असत्य नहीं होते।" कंस-"देवकी की सातवीं सन्तान वह कृत्तनासा बालिका क्या मेरा संहार करेगी ?" निमित्तज्ञ -"राजन् ! आप भूलते हैं, वह कृत्तनासा बालिका देवकी की सातवीं सन्तान नहीं है।" कंस-"तुम यह कैसे जानते हो?" निमित्तज्ञ-"अपने निमित्त-ज्ञान-ग्रह-गणना आदि के आधार पर ।" कंस-"और भी कुछ कहो।" निमित्तज्ञ - "स्वामिन् ! उस कृत्त-नासा बालिका के लक्षण, चिह्न आदि वसुदेवदेवकी से बिलकुल नहीं मिलते।" कंस-"ज्योतिविद् ! अपने निमित्त-ज्ञान के अनुसार देवकी के सातवें गर्भ के सम्बन्ध में कुछ विशेष कहो।" निमित्तज्ञ-'देवकी की सातवीं सन्तान जीवित है और कहीं आस-पास ही उसका लालन-पालन हो रहा है।" मौत का भय सर्वाधिक कष्टकर होता है। कंस चिन्ताकुल हो गया । वह अपने शत्रु को विनष्ट करने की मन-ही-मन कल्पना करने लगा, योजना गढ़ने लगा। उसने ज्योतिविद् से कहा- "अपने ज्ञान द्वारा गवेषणा करो, ज्ञात करो और मुझे ज्ञापित करो, वह कहाँ निमित्त ज्ञ ने गणना की और बतलाया-"राजन् ! मुनि की भविष्य-वाणी अकाट्य है। आपका शत्रु गोकुल में अभिवधित हो रहा है, पालित-पोषित हो रहा है।" कंस-निमित्तज्ञ ! यह भी बतलाओ, उसकी पहचान क्या है ?" निमित्तज्ञ -"राजन् ! यदि आप परीक्षा करना चाहते हैं तो अपने अरिष्ट नामक विपुलशक्ति सम्पन्न वृषभ, केशी नामक अति चपल, स्फूर्त, सबल अश्व, दुर्दान्त खर और ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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