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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
कथानुयोग - वासुदेव कृष्ण : घट जातक
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औल नहीं होने देगी। वह इस बात का पूरा ध्यान रखती । कृष्ण भी उसके पास-पास रहता । कभी-कभी कृष्ण आंगन में दौड़ने लगता । यशोदा उसे पकड़ने का उपक्रम करती । यशोदा दही मथती मक्खन निकालती तो कृष्ण बिलोवन से मक्खन लेकर खा जाता । स्नेहसंपृक्त - हृदया माँ यशोदा उसे कुछ नहीं कहती । यशोदा कभी पास-पड़ोस में जाती तो उंगली पकड़ा कर वह उसे अपने साथ ले जाती । कभी स्वयं मां के पीछे-पीछे चल पड़ता । इस प्रकार माता यशोदा पुत्र की विविध बाल-बालिकाओं का आनन्द लेती ।
वासुदेव के पास गोकुल में हुए उपद्रवों के समाचार पहुंचते रहे । वह अपने पुत्र कृष्ण की रक्षा के लिए चिन्तित हो उठा। वह सोचने लगा- मैंने अपने पुत्र को छिपाया, यह ठीक हुआ, किन्तु उसके चमत्कारिक कार्यों से यह रहस्य प्रकट हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है; अतः उसकी रक्षा की समुचति व्यवस्था की जानी चाहिए ।
बलराम गोकुल में
प्रस्तुत विषय पर बहुत कुछ चिन्तन-मनन कर वसुदेव ने शौर्यपुर से रोहिणी सहित बलराम मथुरा भेजा । माता पुत्र दोनों - रोहिणी और बलराम आये । वसुदेव ने बलराम को एकान्त में ले जाकर गुप्त रूप में उन सभी घटनाओं से अवगत कराया, जो इधर घटित हुई थीं और उससे विशेष रूप से कहा - 'पुत्र ! कृष्ण देवकी का सातवाँ पुत्र है, तुम्हारा अनुज है । उसका जीवन खतरे में है । उसकी रक्षा का उत्तरदायित्व मैं तुम्हे सौंपता हूँ । तुम्हें गोकुल जाना है, उसकी देखरेख और परवरिश में लगा रहना है ।
बलराम ने पिता का आदेश सादर शिरोधार्य किया और बड़े विनयपूर्ण शब्दों में उतर दिया - तात ! आप अनुज कृष्ण की ओर से सर्वथा निश्चिन्त रहें । मैं प्राणपण से उसकी रक्षा करूंगा। मेरे रहते मां देवकी की गोद कदापि रिक्त नहीं होगी ।
पिता ने सस्नेह अपने पुत्र के मस्तक पर हाथ फेरा, उसे आशीर्वाद दिया । वसुदेव को विश्वास हो गया, अब कृष्ण का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा ।
संयोगवश इतने में ही नन्द और यशोदा भी वहाँ आ गये । वसुदेव ने बलराम को सौंपते हुए कहा- "यह मेरा पुत्र है । इसे अपने साथ गोकुल ले जाओ, अपने पुत्र के सदृश समझो ।"
नन्द ने वसुदेव की आज्ञा सहर्ष शिरोधार्य की । वह यशोदा और बलराम के साथ गोकुल चला गया ।
बलराम अपने अनुज कृष्ण के साथ सहर्ष रहने लगा । कृष्ण ज्यों-ज्यों बड़ा हुआ, बलराम उसे विविध प्रकार की युद्ध-कलाओं का शिक्षण देने लगा । बलराम के शिक्षण एवं साहचर्य में कृष्ण शनैः-शनैः धनुर्विद्या में, अन्यान्य युद्ध - विद्याओं में निष्णात हो गया ।
कृष्ण की उत्कृष्ट शक्ति, बुति सुषमा
कृष्ण की दैहिक शक्ति खूब बढ़ी । कभी-कभी वह बैल कि पूँछ पकड़ लेता तो बैल एक डग भी आगे नहीं बढ़ पाता । बलराम अपने अनुज की विपुल शक्ति देखकर बड़ा हर्षित होता ।
शक्ति के साथ-साथ कृष्ण की दैहिक द्युति, कान्ति एवं रूप - सुषमा में अपरिसीम वृद्धि हुई । वह गोकुल में अप्रतिम सौन्दर्य-शाली तरूण के रूप में सुप्रशस्त हुआ ।
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