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________________ ५१२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड ३ इसलिए वह कृष्ण के नाम से विश्रुत हुआ । देवगण गुप्त रूप से उसकी सार-सम्भाल करते रहे । देवकी के मन में था, उसके छः पुत्र तो मृत उत्पन्न हुए, सो तो गये, किन्तु, वह अपने एकमात्र जीवित पुत्र को भी नहीं देख पाती, कितनी हतभागिनी है । वह अपने पुत्र को देखने के लिए बेचैन हो उठी । उसका मातृ- हृदय विरह वेदना से तिलमिला उठा। एक महीना व्यतीत हो गया । उसने अपने पति वसुदेव से अपनी मनःस्थिति निवेदित करते हुए कहा"स्वामिन् ! मैं गोकुल जाना चाहती हूँ । वसुदेव मातृ-हृदय के वात्सल्य, वेदना और पीड़ा को जानता था । जिस मां ने सात शिशुओं को जन्म दिया, किन्तु, जो किसी को घड़ी मर भी अपने अंक में लेकर प्यार-दुलार नहीं कर सकी, वह मां कितनी व्यथा-विह्वल होगी, यह, कल्पना से बाहर नहीं था । वसुदेव ने कहा - "प्रिये ! यदि तुम अकस्मात् गोकुल जाओगी तो कंस के मन में संशय उत्पन्न होगा ।" देवकी - "क्या करूं, मेरा हृदय अपने पुत्र को देखने के लिए अत्यन्त स्नेहाकुल है ।" वसुदेव – “जाने के लिए कोई बहाना सोचो, अन्यथा हमारे पुत्र पर विपत्ति आना आशंकित है ।' 11 पुत्र पर विपत्ति आने की बात सुनते ही देवकी के रोंगटे खड़े हो गये । वह सहसा चिन्ता- निमग्न हो गई। एक ओर पुत्र को देखने की तीव्रतम उत्कण्ठा तथा दूसरी ओर उस पर कोई विपत्ति न आ जाए, यह भावना- बड़ी कठिन स्थिति थी । अन्त में सोचते-सोचते वसुदेव ने एक युक्ति ढूंढ निकाली । उसने कहा - "देवकी ! तुम गो- पूजा का बहाना बनाओ । तदर्थ गोकुल जाने की योजना बनाओ। इससे कंस को सन्देह नहीं होगा और तुम्हारी आकांक्षा भी पूर्ण हो जायेगी ।" देवकी का गो-पूजा के बहाने गोकुल- आगमन देवकी को अपने पति का सुझाव बड़ा उपयुक्त लगा। वह अपनी अनेक सखियों तथा परिचारिकाओं के साथ गो-पूजा के मिष से गोकुल गई । उसने यशोदा की गोद में अपने श्याम सलोने पुत्र को देखा । उसका वर्ण चमकीले नीलम जैसा था। उसकी छाती पर श्रीवत्स का चिह्न था - बालों का सुन्दर, सुकुमार घूंघट था, ऑंखें कमल के समान विकसित थीं, हाथ तथा पग शुभ सूचक चक्रांक से सुशोभित थे । पुत्र को देखकर देवकी का हृदय खुशी से खिल उठा । वह पुत्र को निर्निमेष निहारती रही । फिर वापस मथुरा लौट आई । देवकी को गोकुल जाते-आते रहने का यह एक संगत, उपयुक्त उपाय अधिगत हो गया । वह प्रतिमास गो-पूजा के मिष से गोकुल जाती, दिन भर अपने पुत्र का मुख निहारती, हर्षित होती, शाम को वापस घर लौट आती । देवकी के गो-पूजार्थ जाते-आते रहने का यह परिणाम हुआ, गो-पूजा का लोगों में प्रचलन हो गया, विशेषतः महिलाओं में । राग-द्वेष-जनित, क्रोध - जनित शत्रुता की ग्रन्थि बड़ी दुर्वह होती है । जन्म-जन्मान्तर तक वह चलती है, वंशानुवंश चलती है । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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