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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कूटवाणिज जातक (२) विषयानुक्रम कूट व्यापारी का दुश्चिन्तन पण्डित व्यापारी शास्ता की सेवा में Jain Education International 2010_05 कूट व्यापारी के पूर्व जन्म की कथा लोहे के फाल चूहे खा गये बच्चे को चिड़िया उड़ा ले गई न्यायालय में मुकदमा बोधिसत्त्व द्वारा फैसला दो साझेदार घूर्त बनिये की दुर्भावना बोधिसत्व का वणिक् कुल में जन्म अजित लाभ दुरुपाय धन का समान विभाजन १६. विजय-विजया : पिप्पलीकुमार-भद्रा कापिलायनो विजय-विजया श्रेष्ठो अछास श्रेष्ठिकुमार विजय ब्रह्मचर्य की प्रेरणा : आंशिक प्रत्याख्यान धनवाह - श्रेष्ठि-कन्या विजया से विवाह प्रथम मिलन रहस्योद्घाटन भाग्य का विचित्र खेल आंशिक व्रत की जीवन-व्रत में परिणति विजया का सुझाव अतर्कित संयोग : एक सौभाग्य भोग के साहचर्य का त्याग के साहचर्य में परिणमन ब्रह्मचर्य की अखण्ड आराधना श्रेष्ठी जिनदास का मनः संकल्प संकल्प - पूर्ति का रूप विजय- विजया का नामोद्घाटन अभिनन्दन : पारणा विजय - विजया श्रामण्य की ओर उज्ज्वल निर्मल चरित्र की आराधना For Private & Personal Use Only ६५५ ६५५ ६५५ ६५६ ६५६ ६५६ ६५७ ६५८ ६५८ ६५८ ६५८ ६५६ ६५६ ६६० ६६१-६७५ ६६२ ६६२ ६६२ ६६२ ६६२ ६६३ ६६३ ६६४ ६६४ ६६४ ६६५ lv ६६५ ६६६ ६६६ ६६७ ६६७ ६६८ ६६८ ६६८ www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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