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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-वासुदेव कृष्ण : घट जातक ५०
वसुदेव-"कंस निःसंकोच कहो, स्पष्ट कहो, क्या चाहते हो ?"
कंस- "मेरी यह आकांक्षा है, बहिन देवकी के सात गर्भ-शिशु जन्मते ही आप मुझे देने की कृपा करें।"
देवकी वसुदेव और कंस की बातें सुन रही थी। उसके हर्ष का पार नहीं था, यह सोचकर कि उसके भाई का उसके प्रति कितना स्नेह है, उसके शिशुओं का लालन-पालन करने की कितनी उत्सुकता उसमें है।
_वसुदेव और देवकी-दोनों ने यह सहर्ष स्वीकार किया कि उनके सात शिशु, ज्योंज्यों जन्म लेगे, कंस को दिये जाते रहेंगे। कंस यह सुनकर अत्यन्त सन्तुष्ट हुआ। सभी आन्दोत्सव मनाने में लग गये।
वस्तुस्थिति का ज्ञान : चिन्ता
कुछ समय व्यतीत हुआ, वसुदेव ने अतिमुक्तक मुनि द्वारा की गई भविष्य वाणी के सम्बन्ध में सुना। उसे अपनी भूल पर पश्चात्ताप हुआ। उसका चित्त बहुत खिन्न हुआ। उसने मन-ही-मन कहा, कंस ने उसके साथ बड़ा छल किया, बड़ा धोखा किया । देवकी भी यह जानकर बड़ी दु:खित हुई, किन्तु, उस सम्बन्ध में अब कुछ नहीं हो सकता था; क्योंकि दोनों वचनबद्ध थे।
कंस अपनी ओर से पूर्णरूपेण जागरूक था। इस आशंका से कि वसुदेव और देवकी यहां से निकल न जाएं, उसने दोनों पर पहरा बिठा दिया । वे दोनों इस प्रकार बन्दियों की सी दशा में आ गये ।
प्रारम्भ से ही वसुदेव कंस के प्रति बड़ा उदार एवं सहृदय था, उसका शुभेप्सु था । उसके लिए उसने बहुत कुछ किया । उसे कल्पना तक नहीं थी कि कंस की ओर से उसके प्रति ऐसा भी हो सकता है, किन्तु, हुआ, जो अत्यन्त दुःखद था।
__एक विचित्र संयोग था, देवकी जब गर्भ-धारण करती, शिशु को जन्म देती, ठीक उसी समय भद्दिलपुर-निवासी नाग गाथापति की पत्नी सुलसा भी शिशु को जन्म देती। देवकी के जीवित पुत्र उत्पन्न होते और सुलसा के मृत पुत्र होते।
मृत्वत्सा सुलसा
सुलसा जब बालिका थी, तभी एक भविष्य-वक्ता ज्योतिविद् ने बताया था कि वह मतवत्सा कन्या है । जो भी बच्चे उसके होंगे, सब मत होंगे। सुलमा यह सुनकर बहुत दु:खित हुई। वह बचपन से ही हरिणगमेषी देव की उपासना करती थी। वह सदा शौच, स्नान, मंगल-विधान आदि नित्य-नैमित्तिक कृत्यों से निवृत्त हो आर्द्र साड़ी धारण किये देव की अर्चना, उपासना करती।
हरिणगमेषी देव उसकी भक्ति तथा पूजा से प्रसन्न हुआ। उसने सोचा-सुलसा के इस कष्ट का निवारण करूँ। अपने विशिष्ट ज्ञान से उसे ज्ञात हआ, कंस ने देवकी के नव जात शिशुओं की हत्या करने का निश्चय किया है। तब उसने सुलसा का दु:ख मिटाने हेतु उसे वचन दिया कि वह उसके मृत शिशुओं को जीवित शिशुओं में बदल देगा।
शिशुओं की अदला-बदली
सुलसा का भद्दिलपुर के नाग गाथापति के साथ विवाह हो गया। देव अपने दिव्य
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