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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ परिणयोत्सव के संपन्न हो जाने पर जरासन्ध आदि राजा अपनी राजधानियों को चले गये । राजा रुधिर ने यादवों को आतिथ्य सत्कार हेतु कंस सहित कुछ समय वहीं रखा । ५०६ एक दिन की बात है, समुद्रविजय आदि सभी विशिष्ट जन राजसभा में अवस्थित थे। उसी समय एक प्रौढ़ स्त्री आकाश मार्ग से नीचे उतरी। वह वसुदेव को संबोधित कर बोली- मैं विद्याधरी धनवती हूँ । बालचन्द्रा की माता हूँ। मेरी पुत्री बड़ी कार्य-कुशल, निपुण एवं सुयोग्य है । वह तुम्हारी ओर अत्यधिक आकृष्ट है । तुम्हारे वियोग में सब कुछ भूल चुकी है । मैं तुम्हें लेने यहाँ आई हूँ ।" धनवती का कथन सुनकर वसुदेव ने अपने अग्रज समुद्रविजय की ओर देखा । समुद्रविजय ने मुसकराते हुए कहा - "जाओ, किन्तु पहले की ज्यों गायब मत हो जाना ।" वसुदेव ने शीघ्र ही आने का वचन दिया । वह धनवती के साथ गगनवल्लभ नामक विद्याधर नगर चला गया । वहाँ के विद्याधर राजा कांचनदंष्ट्र ने अपनी पुत्री बालचन्द्रा का वसुदेव के साथ बड़े हर्षोल्लासपूर्वक विवाह किया । उधर राजा समुद्रविजय आदि यादव गण अरिष्टपुर से विदा होकर शौर्यपुर चले गये । इधर गगनबल्लभ नगर से वसुदेव अपनी नव-परिणीता वधू बालचन्द्रा को साथ लेकर विद्याधर वृन्द सहित शौर्यपुर की दिशा में रवाना हुआ। मार्ग में वह अपनी उन सभी - पत्नियों को साथ लेता गया, अपने पर्यटन क्रम के समय जिनके साथ उसने विवाह किये थे । सभी शौर्यपुर पहुँचे । राजा समुद्रविजय ने विद्याधरों का बड़ा आदर-सत्कार किया । आग्रहपूर्वक कुछ दिन अपने यहाँ रखकर विदा किया। शौर्यपुर का वातावरण आमोद-उल्लसित था। सभी बड़े सुख से जीवन-यापन करते थे । बलभद्र का जन्म वसुदेव की पत्नी रोहिणी गर्भवती हुई । बलभद्र की माता को दिखाई देने वाले चार उत्तम स्वप्न उसने देखे । क्रमशः गर्भ का परिपाक हुआ । उसने चन्द्रसदृश द्युतिमान्, कान्तिमान् गौरांग पुत्र को जन्म दिया। राजपरिवार में अपरिसीम आनन्द छा गया । राजा समुद्रविजय आदि यादवों ने अत्यन्त हर्ष तथा उत्साह के साथ पुत्र जन्मोत्सव समायोजित किया। बालक का नाम राम रखा गया, जो आगे जाकर बलराम, बलदेव या बलभद्र के नाम से विश्रुत हुआ । कुमार बलभद्र क्रमशः बड़ा हुआ वह स्वभावतः गुरुजन के प्रति श्रद्धाभिनत था, प्रखर प्रतिभाशील था। थोड़े ही समय में उसने अनेक विद्याएं एवं कलाएँ स्वायत्त कर लीं । एक बार का प्रसंग है, मथुराधिपति कंस ने बड़े स्नेह तथा आग्रह के साथ वसुदेव को मथुरा आने का आमन्त्रण दिया । वसुदेव ने कंस का आमन्त्रण स्वीकार किया। वह मथुरा आया । देवकी से पाणिग्रहण एक दिन कंस, जीवयशा तथा वसुदेव बैठे थे । सस्नेह वार्तालाप चल रहा था । कंस Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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