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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन गया। सिंहरथ और वसुदेव का द्वन्द्व-युद्ध होने लगा। दोनों पराक्रमी थे, रणबांकुरे थे। कोई पीछे नहीं हटता था। जय-पराजय अनिश्चय के झूले में झूलने लगी। सिंहरय बन्द अकस्मात् कंस अपने रथ से कदा । उसने गदा द्वारा सिंहरथ के रथ पर प्रहार किया रथ भंग हो गया। यह देखकर सिंह रथ बड़ा क्रुद्ध हुआ। वह अपने हाथ में तलवार लिए कंस को मारने दौड़ा। इतने ही में वसुदेव ने अपने क्षुरप्र बाण से उसका वह हाथ छिन्न कर डाला, जिसमें वह तलवार लिए था। कंस कपटपूर्ण रण-कौशल में बड़ा प्रवीण था। वह अचानक सिंहरथ पर झपटा, उसे उठाया और वसुदेव के रथ में फेंक दिया। सिंहरथ की सेना की हिम्मत टूट गई। विजयश्री वसुदेव को प्राप्त हुई। सिंहरथ को बन्दी बनाकर वसुदेव कंस आदि शौर्य पर पहुंचे। राजा समुद्रविजय बहुत प्रसन्न हुआ। वह अपने छोटे भाई वसुदेव को एकान्त में ले गया और उससे बोला"वसुदेव ! मैंने क्रोष्टुकि नामक भविष्यद्रष्टा ज्ञानी से सुना है, जरासन्ध की पुत्री जीवयशा हीनलक्षणा है । वह पति-कुल तथा पित-कुल-दोनों का विनाश करने वाली होगी; अत: ध्यान रहे, उसके साथ तुम्हारा विवाह न हो।" वसुदेव-"तब कैसे करें? जीवयशा से कैसे छुटकारा हो।" समुद्रविजय-"चिन्ता मत करो। एक युक्ति है। जरासन्ध से कहना-कंस ने ही सिंहरथ को पराभूत किया है ; अतः जीवयशा का विवाह उसी के साथ किया जाए। वसुदेव ! कंस को तुम्हारे साथ भेजने के पीछे मेरा यही भाव था।" वसुदेव-"एक कठिनाई है। कंस वैश्य है, जरासन्ध क्षत्रिय । वह अपनी पुत्री उसे नहीं देगा।" __ समुद्रविजय कुछ क्षण चुप रहा। फिर वह बोला-"वसुदेव ! जो तुम करते हो, वह बात तो ठीक है, पर, कंस की प्रवतियों को देखते ऐसा नहीं लगता कि वह वैश्यवंशीय वसुदेव- "समझता तो मैं भी यही हूँ। युद्धक्षेत्र में कंस ने जो निर्भीकता, वीरता तथा सहनशीलता दिखलाई, उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है वह क्षत्रिय-पुत्र है। वैश्य-पुत्र द्वारा ऐसा होना संभव नहीं है। हमें खोज करनी चाहिए, उसके जन्म के सम्बन्ध में कोई रहस्यपूर्ण बात तो नहीं है ?" समुद्रविजय को वसुदेव का कथन उपयुक्त लगा। उसने रस-व्यवसायी सुभद्र को बुलाया। सुभद्र उपस्थित हुआ। समुद्रविजय ने उससे कंस का सही-सही परिचय पूछा। सुभद्र बहुत घबरा गया। सोचने लगा-अकस्मात् ऐसा क्या हो गया, जिससे कंस के परिचय की खोज की जा रही है। राजा द्वारा अभय दिये जाने पर सुभद्र ने कंस से सम्बद्ध सारा घटनाक्रम-मंजूषा के यमुना में बहते हुए आने से लेकर उसे कंस को वसुदेव के यहाँ रखने तक का वृत्तान्त बतलाया। राजा ने उग्रसेन तथा धारिणी के नामांकनयुक्त मुद्रिका, वृत्तसूचक पत्र आदि वहाँ उपस्थित करने को कहा। सुभद्र अपने घर जाकर तत्काल ये सारी वस्तुएं ले आया और राजा को सौंप दीं। राजा ने सुख की सांस ली कि समस्या का समुचित समाधान प्राप्त हो गया है । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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