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तत्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-वासुदेव कृष्ण : घट जातक ४६७ - राजा कार्यवश पुनः उसी वन में से गुजरा । तापस को देखते ही उसे ध्यान आयो कि दूसरी बार भी वही गलती हो गई, अक्षम्य अपराध हुआ। वह शोक एवं लज्जा से अभिभूत हो गया। इसके लिए घोर पश्चात्ताप करते हुए उसने तापस से अभ्यर्थना की, कृपा कर एक बार और अवसर प्रदान करें, जिससे मैं आपको भिक्षा देकर अपने दोष-मल का प्रक्षालन कर सकू। यदि नहीं पधारेंगे तो मेरे मन में सदा यह बात खटकती रहेगी।
तापस का मन तो नहीं था, किन्तु, उसकी श्रद्धा तथा भक्ति देखकर उसने फिर स्वीकार कर लिया। अनशन का महीना पूरा होने पर वह पुनः राजमहल में आया । इस बार भी वही बात बनी, जो पहले बन चुकी थी। राजा भूल गया था।
तापस द्वारा निदान
तीन महीनों से भूखा तापस अत्यन्त क्रुद्ध हो गया। उसने मन-ही-मन कहा, यह राजा मुझे जान-बूझकर कष्ट देना चाहता है। प्रतीत होता है, मुझे कष्ट देने में इसे आनन्द आता है। तभी तो अत्यन्त आग्रह के साथ आमन्त्रित करके भी तीन बार में एक बार भी मुझे भिक्षा नहीं दी। क्रोधाग्नि से जलते हुए तापस ने मन-ही-मन कहा- इसका दण्ड इसे मिलना ही चाहिए। यह सोचकर उसने निदान किया कि अपने आचीर्ण तप के फलस्वरूप ऐसा हो कि मैं आगामी भव में इस राजा का वध करूं ।
कंस का जन्म
- तापस ने आचरण-अनशन स्वीकार किया, मृत्यु प्राप्त की। वह राजा उग्रसेन की अग्रमहिषी धारिणी के गर्भ में आया।
दुष्ट गर्भ था ;अतः ज्यों-ज्यों वह बढ़ने लगा, रानी के मन में क्रूरतापूर्ण प्रवृत्तियाँ उभरने लगीं। उसे दोहद उत्पन्न हुआ, मैं अपने पति के पेट का मांस-भक्षण करूं। बड़ी कुत्सित कामना थी। रानी ने उसे ज्यों-ज्यों दबाने का प्रयास किया, वह और अधिक बढ़ने लगी। इसका रानी के स्वास्थ्य पर असर हआ। वह उत्तरोत्तर क्षीण होने लगी।
जब राजा ने बहुत आग्रह किया तो रानी ने बड़े संकोच के साथ अपना दोहद उसे बताया। मन्त्रियों ने रानी का दोहद पूर्ण करने की युक्ति निकाली। उन्होंने गुप्त रूप से राजा के पेट पर खरगोश का मांस लगाया। वास्तविक की ज्यों उसे राजा के पेट से काटकर निकाला। राजा ने कल्पित रूप में आर्तनाद किया, मानो सचमुच उसके पेट का मांस काटा जा रहा हो। रानी ने इस नाटक को यथार्थ समझा। उसने अपना दोहद पूर्ण किया।
जब दोहद पूर्ण हो गया, रानी का मन यथावस्थ हुआ। उक्त घटना का चिन्तन कर वह अत्यन्त दुःखित हुई। कहने लगी- मेरी दूषित मनोवाञ्छा के कारण जब प्राणनाथ ही नहीं रहे तो अब मुझे जीकर क्या करना है।" वह आत्महत्या करने को उद्यत हुई । मन्त्रियों ने समझा-बुझाकर किसी तरह उसे रोका और आश्वस्त किया कि वे मन्त्र-प्रयोग द्वारा सप्ताह भर में राजा को पुनर्जीवित करवा देंगे। - सातवें दिन उन्होंने राजा को रानी के समक्ष उपस्थित किया। उसका शरीर अक्षत, पूर्ववत् स्वस्थ एवं सही सलामत था। रानी को इससे अत्यन्त प्रसन्नता हुई।
क्रमशः गर्भ बढ़ता गया। पौष कृष्णा चतुर्दशी की रात में मूल नक्षत्र में रानी के पुत्र
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