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________________ तत्व : आचार: कथानुयोग] कथानुयोग-वासुदेव कृष्ण : घट जातक ४६५ वासुदेव कृष्ण के चरित के सन्दर्भ में पौराणिकों एवं जैनों से वैचारिक आदानप्रदान के अवकाश रहे हैं, ऐसी संभावना सर्वथा असंगत नहीं कही जा सकती, किन्तु, इस सम्बन्ध में बौद्धों का जो कुछ है, उसमें जरा भी वृद्धि या विकास नहीं हुआ, ऐसा प्रतीत होता है। जैसा पूर्व सूचित है, जैन-परंपरा में कृष्ण का वासुदेव या अर्धचक्री के रूप में अभिमत है, वह कृष्ण काव्यधारा के साहित्यिक विकास में हेतु बना हो, ऐसा संभावित है, किन्तु, बौद्ध-परंपरा में वैसा कोई स्थिति-वैशिष्ट्य नहीं है ; अतः लेखकों तथा कवियों का उघर विशेष आकर्षण न रहा हो, ऐसा संभव है, पर, वे (बौद्ध) मूल वृत्तात्मकता की दृष्टि से भारतीय धारा से पृथक नहीं हैं। वासुदेव कृष्ण यदुवंश-परंपरा जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरत क्षेत्र में मथुरा नामक नगरी थी। वसु नामक राजा वहाँ राज्य करता था। वसु के पश्चात् उसका पुत्र वृहद्रथ वहाँ का राजा हुआ । तदनन्तर क्रमशः उसके वंश-प्रसूत अनेक राजाओं ने वहाँ राज्य किया । बहुत समय व्यतीत होने पर उसी वंश में यदु नामक राजा हुआ। वह अत्यन्त प्रतापी और वीर था। उसके नाम से वह वंश यदुवंश या यादव-वंश कहलाया। यदु के शूर नामक पुत्र हुआ, जो सूर्य के सदृश तेजस्वी-ओजस्वी था। राजा शूर के शौरि तथा सुवीर नामक दो पुत्र हुए। राजा शूर ने शौरि का राज्याभिषिक्त किया, सुवीर को युवराज-पद दिया और स्वयं प्रव्रज्या स्वीकार करली। शौरि ने मथुरा का राज्य अपने छोटे भाई सुवीर को दे दिया। वह स्वयं कुगात देश चला गया। उसने वहाँ शौर्यपुर नामक नया नगर बसाया। उसे अपनी राजधानी बनाया। वह वहीं रहने लगा। राजा शौरि के अन्धकवृष्णि नामक पुत्र हुआ तथा सुवीर के भोजवृष्णि नामक पुत्र हुआ। राजा सुवीर ने अपने पुत्र भोजवृष्णि को मथुरा का राज्य सौंप दिया। वह स्वयं सिन्धु देश में चला गया, जहाँ उसने सौवीरपुर नामक नये नगर की प्रतिष्ठापना की। उसे अपनी राजधानी बनाया। वह वहाँ शासन करने लगा। राजा शौरि ने अपने पुत्र अन्धककृष्णि को शौर्यपुर का राज्य दे दिया, स्वयं सुप्रतिष्ठि नामक मुनि के पास प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। उत्कृष्ठ भावना के साथ शुद्ध संयम एवं तप का आचरण किया, अन्ततः सम्पूर्ण कर्म-क्षय कर मुक्ति प्राप्त की। मथुरा के अधिपति भोजवृष्णि के उग्रसेन नामक पुत्र हुआ। उग्रसेन बड़ा पराक्रमी एवं प्रभावशाली था। शौर्यपुर के राजा अन्धकवृष्णि के अयनी सुभद्रा नामक रानी से समुद्र विजय, अक्षोभ्य, स्तिमित, सागर, हिमवान्, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र तथा वसुदेव नामक दस पुत्र हुए, जो दशाह कहलाए। अन्धकवृष्णि के कुन्ती और माद्री नामक दो कन्याएं भी हुई। कुन्ती राजा पाण्डु को तथा माद्री राजा दमघोष को ब्याही गई। राजा अन्धकवृष्णि ने अपने ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय को राज्यारूढ़ कर स्वयं संयम Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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