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________________ ४६४ [खण्ड : ३ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन ११ वासुदेव कृष्णः घट जातक भारतीय-वाङमय के अन्तर्गत अनेक विस्तृत, संक्षिप्त, गद्य, पद्य आदि विभिन्न विधाओं में, विविध भाषाओं में विरचित कृतियों में वासुदेव कृष्ण एक गरिमामय चरितनायक के रूप में वणित हुए हैं। जैन-साहित्य में त्रिषष्टि शलाका पुरुषों में-पाम पुण्यशील उत्तम तिरेसठ पुरुषों में उनका वासुदेव-अर्ध चक्रवर्ती के रूप में विशिष्ट स्थान है । अन्तकृद्दशांग सूत्र, उत्तराध्ययन टीका, वसुदेवहिंडी, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित, हरिवंश-पुराण आदि में उनका चरित पूर्वापर-सम्बद्ध घटना-क्रमों के साथ बहुत विस्तार से निरूपित हुआ है । जैन-परंपरा के अन्तर्गत संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश-इन प्राचीन भाषाओं तथा अनेक अर्वाचीन भाषाओं में कृष्णकाव्यधारा का बहुत विकास हुआ। बौद्ध-वाङमय में कृष्ण-काव्यधारा का वैसा विकास तो नहीं हुआ, किन्तु, उसका मूल उत्स वहाँ भी विद्यमान है। वहाँ घट जातक में जो वर्णन आया है, वह वासुदेव कृष्ण के चरित के समक्ष है। घट जातक में वासुदेव नाम का ही प्रयोग हुआ है। जैन-कथानक में वासुदेव की मां का नाम देवकी है, बौद्ध-कथानक में उसके स्थान पर देव गर्भा है । जैन-कथानक में देवकी के शिशुओं की हत्या का जो प्रसंग है, उसी कोटि का प्रसंग बौद्ध-कथानक में है। वहां भी राजा देवगर्भा के शिशुओं की हत्या करने का कृत संकल्प है। दोनों ही कथानकों में हत्योद्यत राजा कंस के नाम से अभिहित है। देवकी और देवगर्भा के पुत्रों की संख्या में अन्तर है। देवकी के सात पुत्र हैं, जबकि देवगर्भा के दस पुत्रों का उल्लेख है। जैन-कथानक के अनुसार नन्द गोप के यहाँ वासुदेव कृष्ण का लालन-पालन होता है, उसी प्रकार बौद्ध-कथानक में वासुदेव और उसके भाइयों का नन्दगोपा के यहाँ पालन-पोषण होता है। वासुदेव कृष्ण के विनाशार्थ जैसे कंस द्वारा मल्लयुद्ध आयोजित किये जाने का जैनकथानक में उल्लेख है, वैसा ही मल्ल-युद्ध का प्रसंग बौद्ध-कथानक में आता है । वासुदेव के भाई के रूप में बलदेव दोनों में है। जैन-परंपरा में बलदेव के पर्यायवाची बलभद्र और वलराम भी हैं। दोनों ही कथानकों में चाणूर और मुष्टिक नामक मल्ल अखाड़े में उतरते हैं। वासुदेव और बलदेव से मुकाबला होता है। जैन-कथानक के अनुसार चाणूर का वध वासुदेव कृष्णं द्वारा तथा मुष्टिक का वध बलदेव द्वारा होता है। बौद्ध-कथानक में चाणूर और मुष्टिक दोनों बलदेव के हाथ से मारे जाते हैं । कंस का वध दोनों ही कथानकों में वासुदेव द्वारा होता है। द्वारिका-नाश का प्रसंग दोनों में है। दोनों ही कथानकों में राजकुमारों का क्रमशः तपस्वी द्वैपायन तथा कृष्ण द्वैपायन के प्रति उद्धृत, उद्दण्ड व्यवहार प्रदर्शित है, जो (दोनों तपस्वी) क्रमश: निदान एवं भविष्य-भाषण के रूप में द्वारिका-नाश के निमित्त बनते हैं। वासुदेव कृष्ण का अवसान लगभग एक सदृश दुरवस्था में होना उभयत्र वर्णित है । जैन-कथानक में यदुवंशाय जराकुमार तथा बौद्ध-कथानक में आखेटक जरा के बाण से वे देहत्याग करते हैं। पारिपाश्विक प्रसंगों, घटनाओं आदि में यद्यपि सर्वथा सादृश्य नहीं है, किन्तु, बीज रूप में कथा का उत्स, जो बौद्धों में प्राप्त हैं, विषय-वस्तु की मूलगामिता की दृष्टि से वह जैनों से विसदृश नहीं है। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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