SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 553
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्व : माचार : कथानुयोग] कथानुयोग-बया और बन्दर : कुटिदूसक जातक ४६३ त्याग करो, प्रयत्नशील बनो, शीत, वायु और आतप से बचने के लिए एक कुटी बना लो।"१ बये का घोंसला चूरचूर बन्दर ने बये के कथन पर हित की दृष्टि से विचार नहीं किया। उसने विपरीत सोचा -यह बया खुद तो वर्षा आदि से सुरक्षित स्थान में बैठा है, मैं जो वर्षा और शीत से कष्ट पा रहा हूँ, मेरा उपहास कर रहा है। मैं ऐसा करूंगा, जिससे बैठने के लिए इसके घोंसला ही न रहे । यह सोचकर वह बये को पकड़ने के लिए कूदा। बया तत्क्षण वहाँ से उड़कर दूसरी जगह चला गया । बन्दर ने घोंसले को चूर-चूर कर डाला, नष्ट कर दिया और वहाँ से चलता बना। भगवान् ने कहा-"स्थविर काश्यप की कुटी जलाने वाला उलङ्कशब्दक भिक्षु तब बन्दर था, बया तो स्वयं मैं ही था।" १. अनवट्ठित चित्तस्स, लहुचित्तस्स दुब्भिनो। निच्चं अध्धुवसीलस्स, सुचिभावो न विज्जति ।। सीकरस्सानुभावं, वीतिवत्तस्सु सीलियं । सीतवातपरित्ताणं, करस्सु कुटिकं कपि ।। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy