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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
। खण्ड: यह असहिष्णु भिक्षु, मैं जो-जो कार्य करता हूँ, उनके सम्बन्ध में ऐसा प्रदर्शन करता है, मानो वे उसने ही किये हों। उसकी यह आदत में प्रकट करूं ।
असहिष्णु मिक्षु को समझाने का उपक्रम
__ स्वयं कार्य न कर अपने साथी द्वारा किये गये कार्य को अपना बताने वाला भिक्षु गाँव में जाकर, भोजन कर, वापस लौटकर सोता था, तब सेवाभावी भिक्षु ने स्नान का जल गर्म किया, उसे पीछे की ओर स्थित कोठरी में रखा। थोड़ा-सा पानी-मात्र आधी नाली चूल्हे पर छोड़ दिया।
दूसरा भिक्षु उठा, चूल्हे की ओर गया, देखा-पानी के बर्तन से भाप उठ रही है। उसने सोचा, पानी को गर्म कर स्नान करने की कोठरी में रख दिया होगा । वह स्थविर काश्यप के पास गया और उनसे कहा- भन्ते ! स्नान की कोठरी में जल रखा है, आप स्नान कर लीजिए।" अच्छा, स्नान करता हूँ, यह कहकर स्थविर उस भिक्षु के साथ स्नान की कोठरी में आये । कोठरी में स्नान का पानी नहीं था, तो उन्होंने उनसे पूछा-गर्म पानी कहाँ है ? वह भिक्षु शीघ्रता से अग्निशाला में पहुंचा, चूल्हे पर जो बर्तन रखा था, उसमें कड़छी फिराई । बर्तनखाली था। बहुत थोड़ा-सा पानी उसमें था। खाली बर्तन में कड़छी फिराने से 'सर' शब्द हुआ। उस दिन से यों शब्द करने के कारण वह भिक्षु 'उलुङ्कशब्दक' नाम से अभिहित किया जाने लगा। उसी वक्त सेवाशील भिक्षु पीछे स्थित कोठरी में से नहाने के लिए रखे गर्म पानी का बर्तन ले आया और बोला-"भन्ते ! आप स्नान कीजिए। स्थविर ने स्नान किया। तत्पश्चात् उन्होंने विचार किया-उलुङ्कशब्दक को मुझे समझाना चाहिए, यद्यपि यह कठिन लगता है, वह समझ जाय । सायंकाल जब वह भिक्षु स्थविर की सेवा में उपस्थित हुआ तब स्थविर ने उसे कहा-'आयुष्मन् ! श्रमण का कर्तव्य है, वह जो अपने द्वारा कृत है, उसे ही अपना किया कहे। ऐसा न होने पर उसे जानबूझकर असत्य-भाषण करना होता है भविष्य में ऐसा मत करना।"
असहिष्णु उलुङ्कशब्दक द्वारा विपरीत आचरण
स्थविर महाकश्यप ने तो सद्भावना से ऐसा कहा था, किन्तु, वह भिक्षु उसे सह नहीं सका। वह महाकश्यप के प्रति मन-ही-मन बड़ा कुपित हो गया। दूसरे दिन वह स्थविर महाकाश्यप के साथ भिक्षाटन हेतु गाँव में नहीं गया, महाकाश्यप दूसरे भिक्षु के साथ ही गांव में गये।
पीछे से उलुङक शब्दक उस उपासक-परिवार में पहुंचा, जो महाकाश्यप के प्रति विशेष श्रद्धाशील एवं भक्तिशील था। वहाँ उसे परिवार के सदस्यों ने पूछा-"मन्ते ! स्थविर महाकश्यप कहाँ है ?"
उलुङ्कशब्दक बोला-"वे अस्वस्थ हैं; अतः विहार में ही स्थित हैं।" "भन्ते ! तो उनके लिए क्या-क्या चाहिए ?"
उलुङकशब्दक ने उनके लिए 'अमुक वस्तु चाहिए, यों कहकर उनसे कई प्रकार के अपने रुचि के पदार्थ लिये । मनोनुकूल स्थान पर गया, खाया-पीया । फिर वह विहार में आ गया।
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