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________________ ४८८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन । खण्ड : ३ १० बया और बन्दर : कुटि दूसक जातक अपने कार्य-कौशल, शिल्प-नैपुण्य आदि का कभी दम्भ नहीं होना चाहिए। किसी अयोग्य व्यक्ति के साथ भी दम्भवश ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जो उसे अप्रिय और अपमानजनक लगे। अपने को अपमानित समझ लेने से उसमें प्रतिशोध की अग्नि प्रज्वलित हो जाती है। प्रतिशोध को शान्त करने हेतु वह बहुधा उपद्रवात्मक, हिंसात्मक रुख अपना लेता है। एक दूसरा पक्ष और है, उद्दण्ड एवं उद्धृत पुरुष को शिक्षा देने हेतु किया गया व्यवहार उस द्वारा हितात्मक दृष्टि से नहीं देखता है । तिरस्कार मान लेने पर उसमें क्रोध का आवेग एवं बदले की दुर्भावना सहज ही उभर आती है। जैन-वाङ्मय के अन्तर्गत वृहत्कल्पभाष्य, आवश्यक चूणि आदि में तथा बौद्ध-वाङ्मय के अन्तर्गत कुटि दूसक जातक में बन्दर और बये की कथा एक ऐसा ही प्रसंग है, जहाँ बये की द्वारा बन्दर को कुटी बनाने का कहे जाने पर बन्दर उसे अपना अपमान समझकर बये का घोंसला चूर-चूर कर डालता है। जैन-कथानक एवं बौद्ध-कथानक क्रमशः उपर्युक्त दोनों तथ्यों के संसूचक हैं। बौद्ध-कथानक का वैशिष्ट्य यह है, वहाँ बन्दर और बये का प्रसंग सीधा उपस्थापित नहीं होता। स्थविर महाकाश्यप के पात्र तोड़ देने वाले, कुटी जला देने वाले उद्दण्ड भिक्षु उलुक शब्तक के पूर्व-जन्म के वृत्तान्त के रूप में वह शास्ता द्वारा आख्यात है। बया और बंदर कोशल का दम्भ एक बया था। उसने अपने लिए एक पेड़ पर बड़ा अच्छा घोंसला बनाया। एक बार का प्रसंग है, वर्षा का मौसम था, शीतल पवन चल रहा था, निरन्तर पानी बरस रहा था। उस समय एक बन्दर सर्दी में काँपता हुआ, वर्षा में भीगता हुआ कुछ बचाव के लिए उस पेड़ के नीचे आया । वहाँ बैठा। बया अपने सुरचित, सुरक्षित घोंसले में बैठा था। उसने बन्दर को शीत से ठिठुरते हुए देखा, वह बोला-"अरे बन्दर ! जरा ऊपर नजर उठाकर देख, यह मेरा घोंसला है। कितनी मेहनत से मैंने इसे तैयार किया है। मेहनत का सुफल मैं भोग रहा हूँ। इस भयानक ठण्ड और बारिस में मैं यहाँ सुख से निरापद् बैठा हूँ। मूसलाधार बरसते पानी से मुझे कोई भय नहीं है और न शीतल बयार ही मेरा कुछ बिगाड़ सकती है। अरे मूढ़ ! मुझे तुझ पर बड़ा तरस आता है, मन में बड़ी करुणा उठती है, तेरे हाथ हैं, तेरे पैर हैं, जो परिश्रम करने के साधन हैं, किन्तु, तू आलसी है। तू सर्वथा सक्षम होता हुआ भी आलस्य के कारण कुछ करता नहीं। बारिस की तेज बौछारें तू बर्दाश्त कर सकता है, शीतल बयार के आघात तू झेल सकता है, किन्तु, थोड़ा-सा परिश्रम कर आवास के लिए घर बनाने को उत्कंठित, उत्साहित नहीं होता, प्रयत्न नहीं करता।" बया ने जो कहा, बन्दर ने खामोशी के साथ सुना। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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