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तस्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - जिन रक्षित और रणया देवी : बा० जा० ४८७
ये च काहन्ति ओवादं नरा बुद्धेन वेसितं । सोत्थि परङ्गमिस्सन्ति वालाहेनेव वाणिजा ॥ २ ॥
जो मनुष्य बुद्ध द्वारा देशित - निरुपित शिक्षा के अनुरूप नहीं चलते, वे राक्षसियोंयक्षिणियों द्वारा संकटग्रस्ट व्यापारियों की ज्यों व्यसन घोर दुःख प्राप्त करते हैं । जो मनुष्य बुद्ध द्वारा देशित - निरूपित शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे कुशल पूर्वक इस संसार सागर को पार कर जाते हैं, निर्विघ्नतया निर्वाण को प्राप्त कर लेते हैं, जिस प्रकार वे व्यापारी बादलअश्व के द्वारा प्रेरित होकर संकट के पार पहुँच गये ।"
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