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________________ ४८४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ तभी की बात है, श्रमण भगवान् महावीर एक समय चम्पा में पधारे, पूर्णभद्र चैत्य में ठहरे। भगवान् को वन्दन-नमन करने हेतु विशाल जन-समुदाय आया। राजा कोणिक भी आया। जिनपालित भी भगवान् की सेवा में पहुँचा । उसने भगवान् का उपदेश सुना। उसे संसार से वैराग्य हुआ। उसने श्रमण-दीक्षा अंगीकार की। अध्ययन कर वह ग्यारह अंगों का ज्ञाता हुआ । अन्त में एक मासिक अनशन के साथ वह समाधिपूर्वक कालधर्म को प्राप्त हुआ। सौधर्म नामक स्वर्ग में वह दो सागरोपम आयुष्ययुक्त देव के रूप में उत्पन्न हुआ। अपना स्वर्ग का आयुष्य पूरा कर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा, वहाँ सिद्ध होगा-मुक्त होगा। आर्य सुधर्मा द्वारा श्रमणों को प्रेरणा आर्य सुधर्मा ने कहा-"आयुष्यमन् श्रमणो ! जो साधु या साध्वियाँ आचार्य अथवा उपाध्याय के पास प्रवजित हो कर मनुष्य-जीवन-सम्बन्धी सांसारिक काम-भोगों की कामना नहीं करते, वे जिनपालित की ज्यों संसार-समुद्र को पार कर जाते है।'' बालाहस्स जातक मिक्षु की उत्कंठा : शास्ता द्वारा उद्बोधन शास्ता ने देखा-एक भिक्षु बहुत उत्कंठित है। उन्होंने उससे पूछा-"भिक्षु ! क्या तुम वस्तुत: उत्कंठित हो ? भिक्षु बोला-"मंते ! सचमुच मैं उत्कंठित हूँ।" इस पर शास्ता ने पूछा- भिक्षु ! तुम क्यों उत्कंठित हो?" भिक्षु ने उत्तर दिया-"भंते ! मैंने अलंकारों से विभूषित एक स्त्री को देखा । मन में कामुकता का भाव जागा। उत्कंठा उत्पन्न हुई।" शास्ता बोले- "भिक्षु ! कामिनियाँ अपने सौन्दर्य, शब्द, गन्ध, रस, स्पर्श तथा हासविलास से पुरुषों में अपने प्रति आसक्ति उत्पन्न कर देती हैं । जब वे समझ लेती हैं कि पुरुष उनके वशगत हो गये हैं, तो वे उनका शील नष्ट कर डालती हैं, अर्थ नष्ट कर डालती हैं। इसी कारण इन्हें यक्षिणियाँ कहा जाता है। पहले भी यक्षिणियों ने स्त्री जनोचित हासविलास द्वारा एक काफिले के व्यापारियों को अपनी ओर आकृष्ट किया, अपने वश में किया। फिर जब दूसरे आदमियो के काफिले को देखा तो उन्होने उनको अपना निशाना बनाया। पहले वाले कामासक्त जनों को मार डाला, अपने दोनों दाढ़ों से खून बहाते हुए उन्हें मुरमुरे की ज्यों चबा गई। सिरीसवत्थु की यक्षिणियाँ शास्ता ने इस प्रकार आख्यान कर वह पूर्वतन कथा इस प्रकार कही पूर्व समय की बात है, ताम्रपर्णी द्वीप में सिरीसवत्थु नामक एक यक्षनगर था। उस में यक्षिणियां निवास करती थीं । समुद्र में जिन व्यापारियों की नौकाएं भग्न हो जाती, वे व्यापारी जब उस समय द्वीप पर आते तो वे सुसज्जित होकर, खाद्य, पेय-पदार्थ साथ लिए, दासियों से संपरिवृत, गोद में बच्चों को लिए हुए व्यापारियों के निकट आतीं। व्या १. आधार--ज्ञाता धर्मकथांग सूत्र, नवम् अध्ययन । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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