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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: रमण किया है, ललित-क्रीड़ाएं की हैं, झूला झूले हो, मनोरंजन किया है, उन सब की कुछ भी परवाह न करते हुए मेरा परित्याग कर तुम जा रहे हो, ऐसा क्यों ?" निनरक्षित किञ्चित् विचलित : देवी द्वारा प्रणय-निवेदन
रत्नद्वीप की देवी ने अवधि-ज्ञान द्वारा यह जाना कि इससे जिन रक्षित का मन कुछ विचलित जैसा है। तब वह कहने लगी-"जिनपालित के लिए तो मैं इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ तथा आनन्दप्रद नहीं थी, पर, जिन रभित के लिए तो मैं सदैव अभीप्सित, कमनीय, प्रिय, मनोज्ञ एवं आनन्प्रद थी। जिनरक्षित भी मेरे लिए वैसा ही था; इसलिए यदि जिनपालित रुदन करती हुई, क्रन्दन करती हुई, शोक करती हुई, अनुतप्त होती हुई, विलाप करती हुई मेरी परवाह नहीं करता तो कोई बात नहीं, किन्तु, जिनरक्षित | तुम्हें तो मैं प्रिय हूँ, मुझे भी तुम प्रिय हो, फिर तुम मुझे रोती हुई देखकर भी कुछ परवाह नहीं करते ?"
रत्नद्वीप की देवी ने अवधि-ज्ञान द्वारा जिनरक्षित की मनोदशा को जान लिया। वह भीतर ही भीतर द्वेष से दग्ध थी, बाहर से उसे छलने का अभिप्राय लिए सुगन्धित फूलों की वृष्टि करने लगी और उसको लुभाने के लिए अनेक प्रकार के कृत्रिम अनुरागमय, प्रेममय, शृंगारमय, मधुरतायुक्त, स्नेहयुक्त वचन बोलने लगी, मानो उसके वियोग में सचमुच वह अत्यन्त खिन्न, उद्विग्न, पीड़ित और दुःखित हो। वह पापिनी, कुत्सित-हृदया पुनः-पुन: वैसे स्नेहसिक्त, सरस, मृदुल, मधुर वचन बोलती हुई पीछे-पीछे चलने लगी। मासक्ति का उद्रेक : निपतन
__ कर्ण-प्रिय, मनोहर आभूषणों के शब्द से तथा प्रणय-निवेदन युक्त वचनों से जिनरक्षित का मन विचलित हो गया। उसे उसके प्रति पूर्वापेक्षा दुगुना प्रेम उत्पन्न हो गया। वह उसके रूप, लावण्य, सौन्दर्य, यौवन तथा उसके साथ कृत काम-क्रीड़ाओं का स्मरण करने लगा। उसने देवी की ओर आसक्त भाव से देखा । शैलक यक्ष ने अवधि-ज्ञान द्वारा यह सब जान लिया तथा जिनरक्षित को, जो चैतसिक स्वस्थता खो चुका था, शन:शनैः अपनी पीठ से गिरा दिया।
देवी द्वारा जिनरक्षित की निर्मम हत्या
उस निर्दय, नृशंस, पापिनी रत्नद्वीप की देवी ने जब जिनरक्षित को शैलक की पीठ से गिरते हुए देखा तो वह बड़े क्रोध और घृणा से बोली-"अरे नीच ! तू अब मरेगा।" उसने गिरते हुए जिनरक्षित को जल तक पहुँचने से पूर्व ही अपने दोनों हाथों से झेल लिया। वह बुरी तरह चिल्ला रहा था। देवी ने उसको ऊपर उछाला। जब वह नीचे की ओर गिरने लगा तो उसे अपनी तलवार की नोक में पिरो लिया। वह बुरी तरह विलाप कर रहा था। देवी ने अपनी तलवार से उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर डाले । जिनरक्षित के अगोपांग रक्त से व्याप्त थे। देवी ने दोनों हाथों की अंजलि कर प्रसन्न हो कर उत्क्षिप्त बलिदेवता को उद्दिष्ट कर ऊपर आकाश की ओर फेंकी जाने वाली बलि की तरह जिनरक्षित के शरीर के टुकड़ों को चारों दिशाओं में फेंक दिया।
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