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तस्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-रामचरित : दशरथ जातक आ गए हैं तो वे मन्त्रियों सहित उद्यान में गए। राम को राजा और सीता को पटरानी बनाया, राजतिलक किया। यों राज्याभिषेक हो जाने के बाद बोधिसत्त्व राम अलंकारों से सुशोभित रथ पर आरूढ़ हुए। विशाल जन-समुदाय उनके पीछे-पीछे चलता था, वे नगर में प्रविष्ट हुए, नगर की प्रदक्षिणा की-नगर में घूमे तथा सुचन्दनक नामक प्रासाद के ऊपरी तल्ले पर स्थित हुए। वहाँ निवास करने लगे। शंख के समान सुन्दर ग्रीवायुक्त, महाबाहु बोधिसत्त्व राम ने सोलह हजार वर्ष पर्यन्त धर्म-पूर्वक राज्य किया।' अन्त में स्वर्ग सिधारे।
शास्ता ने इस प्रकार सत्यों का सम्यक् प्रकाशन किया। पितृशोक से सन्तप्त गृहस्थ स्वस्थ हुआ, स्रोतापत्ति फल में संप्रतिष्ठित हुआ।
सार-संक्षेप
भगवान् ने बताया कि महाराज शुद्धोधन महाराज दशरथ थे, महामाया बोधिसत्त्व की माता थी, राहुल-माता यशोधरा सीता थी। आनन्द भरत था, सारिपुत्त लक्ष्मण था, जन-परिषद्-जनता बुद्ध-परिषद् थी तथा राम पंडित तो खुद मैं ही था।
१. दस वस्स सहस्सानि, सट्ठि वस्स सतानि च ।
कम्बुगीवो महाबाहु, रामो रज्जं अकारयि ॥१३॥
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