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४७२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३ ने विचार किया कि ये दोनों अभी बच्चे हैं, मुझ जैसा सामर्थ्य, सहिष्णुभाव इनमें नहीं है। जब ये एकाएक सुनेंगे कि हमारे पिता की मृत्यु हो गई है, तो घबरा जायेंगे, उस शोक को सह नहीं पायेंगे, । संभव है, उस दुःख से इनका हृदय फट जाए; इसलिए इन्हें विशेष रूप से जल में खड़ाकर मैं यह समाचार कहूंगा। यों सोचकर राम परिडत ने उनको सम्मुखवर्ती एक सरोवर दिखाते हुए कहा कि तुम आज बहुत देर करके आये, इसका तुम्हें यह दंड झेलना होगा, उस पानी के अन्दर जाओ और खड़े हो जाओ। राम पण्डित से उन्होंने जब यह सुना तो वे उनके आदेशानुसार पानी में जाकर खड़े हो गए । तब राम पण्डित ने घटित घटना का इन शब्दों में आख्यान किया कि यह भरत ऐसा कह रहा है कि महाराज दशरथ की मृत्यु हो गई है।
लक्ष्मण और सीता ने ज्योंही यह सुना कि पिता दिवंगत हो गए हैं, वे मूच्छित हो गए। राम पंडित ने दूसरी बार वही बात कही, वे दूसरी बार मूच्छित हो गए, फिर उन्होंने तीसरी बार कही, तब वे तीसरी बार मूच्छित हो गए। मंत्री उन्हें उठाकर जल से बाहर लाए तथा जमीन पर बिठाया। कुछ देर में उन्हें होश आया। सबने परस्पर शोक-विलाप किया, बैठे।
भरत कुमार सोचने लगा-मेरा भाई लक्ष्मणकुमार तथा बहिन सीता देवी पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर वहुत दुःखित हो गए। वे शोक को नहीं सह सके, किन्तु, राम पंडित में एक बड़ी विशेषता भी दिखाई देती है, न शोक करते हैं, न वे रोते ही हैं। वे इस प्रकार शोक से अतीत कैसे हो गए हैं। ऐसा होने का क्या कारण है ? मैं उनसे इस सम्बन्ध में जिज्ञासित करूंगा। यह सोचकर उन्हें पूछा--"राम ! आप किस प्रभाव से किस विशे बल से शोचितव्य-शोक करने योग्य के लिए शोक नहीं करते, चिन्ता नहीं करते। पिता को कालगत-मृत सुनकर भी आपको दुःख नहीं होता।" राम द्वारा संसार की अनित्यता पर प्रकाश
राम पंडित ने अपने विगत शोक होने का हेतु समझाते हुए संसार की अनित्यता पर प्रकाश डालते हुए कहा-"जि से मनुष्य बहुत विलाप-प्रलाप करके भी पुनः जीवित नहीं कर सकता, उसके लिए- उसकी मृत्यु पर कोई प्राज्ञ पुरुष क्यों अपने आपको उत्तप्त करेकष्ट पहुँचाए।
"संसार का यह तो स्वभाव ही है---जवान, बूढ़े, अज्ञ, पंडित, धनाढ्य तथा दरिद्रसभी मृत्यु-परायण हैं-अन्त में सबको अनिवार्य रूप से जाना पड़ता है।
"फल जब पक जाते हैं तो नित्य उनके गिरने-पड़ने की आशंका बनी रहती है, डर बना रहता है, उसी प्रकार जिन्होंने जन्म लिया है, उन मर्यो-मनुष्यों को मृत्यु से निरन्तर भय बना रहता है।
"प्रात:काल हम बहुत से लोगों को देखते हैं, किन्तु, सायंकाल उनमें से कई नहीं दिखाई देते अर्थात् कुछ को मौत अपने दामन में समेट लेती है। इसी प्रकार हम कभी-कभी
१. एथ लक्खन सीता च, उभो ओतरथोदकं ।
एवायं भरतो आह, राजा दशरथो मतो ॥१॥ २. केन रामप्पभावेन, सोचितब्बं न सोचसि ।। पितरं कालगतं सुत्वा, न तं पसहते दुःखं ॥२॥
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