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________________ तत्त्व : आचार: रामचरित : दशरथ जातक हई राम लक्ष्मण के साथ चल पड़ी। वहत जन-समूदाय भी उन तीनों के साथ चल पड़ा। उन्होंने समझा-बुझाकर उसे किसी तरह वापस लौटाया । हिमालय पर आवास वे तीनों चलते-चलते हिमालय पहुंचे। उन्होंने वहाँ अपने रहने के लिए ऐसे स्थान का चयन किया, जहां पीने के लिए पानी सुलभ था, खाने के लिए फल आदि प्राप्य थे । वहां उन्होंने आश्रम का निर्माण किया । फल आदि द्वारा जीवन-निर्वाह करते हुए रहने लगे। लक्ष्मण पंडित और सीता देवी ने राम पंडित से निवेदन किया कि आप हमारे पिता के समान हैं। आप आश्रम में ही रहा करें। हम आपके लिए फल आदि लाकर खाने की व्यवस्था करेंगे, सेवा करेंगे। तब से राम पंडित वहीं आश्रम में ही रहने लगा। लक्ष्मण और सीता दोनों फल आदि लाकर उसकी सेवा. परिचर्या करने लगे। राम को लौटाने हेतु भरत का प्रयास ___ यों वे तीनों हिमालय पर वन में अपना निर्वाह कर रहे थे। आठ वर्ष व्यतीत हो गये। महाराज दशरथ के मन पर पुत्रों के वियोग की भारी चोट थी। वे उसे नहीं सह सके। उस शोक के कारण नौवें वर्ष उनकी मृत्यु हो गई। राजा का लोकाचारानुगत शरीर-कृत्य परिपूर्ण हो जाने पर पटरानी ने अपने पुत्र भरतकुमार से कहा--''अब तुम राज-छत्र धारण करो।" मंत्रियों ने उसका विरोध किया। उन्होंने कहा-'राज-छत्र के न्यायसंगत अधिकारी तो वन में निवास कर रहे हैं, दूसरे को यह कैसे दिया जाए।" भरतकुमार ने भी विचारा-मन्त्रिगण ठीक कहते हैं, राज-छत्र के तो मेरे ज्येष्ठ भ्राता राम पण्डित ही अधिकारी हैं । मुझे उन्हें वापस लाने के लिए उनके पास जाना चाहिए, उन्हें वन से लौटाकर राजछत्र धारण कराना चाहिए। यों निश्चय कर भरत कुमार ने चतुरंगिणी सेना साथ ली, राजचिह्न साथ लिये, अमात्य आदि राज पुरुषों को साथ लिया। वह राम पण्डित के आवास-स्थान पर पहुँचा। उसने आश्रम से थोड़ी दूर पर अपना शिविर डाला। वह कतिपय मन्त्रियों के साथ आश्रम में आया। उस समय लक्ष्मण पण्डित और सीता देवी फल आदि लाने हेतु वन में गए हए थे। राम पण्डित सम्यक् प्रकार से रखी हुई सोने की मूर्ति की ज्यों निश्चल, निश्चिन्त भाव ले सुखपूर्वक बैठे थे। भरतकुमार उनके पास गया। उनको प्रणाम किया और एक तरफ खड़ा हो गया। पिता के मृत्यु का समाचार भरत ने राजा की मृत्यु का समाचार बताया तथा वह मन्त्रियों सहित उनके चरणों में गिरकर रोने लगा । यह समाचार सुनकर राम पण्डित न चिन्तित ही हुए और और न रोये ही । उनकी आकृति में किसी प्रकार का विकार नहीं आया। भरत कुमार रो कर, शोक कर बैठ गया। लक्ष्मण और सीता को असह्य शोक सायंकाल लक्ष्मण और सीता-दोनों फल आदि लेकर आश्रम में आए। राम पंडित ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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