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________________ ४७० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ समझाया, राजा होश में आया, मृत पटरानी का लौकिक क्रिया-कर्म किया, । एक दूसरी पटरानी मनोनीत की। वह राजा को बहुत प्रिय थी, मनोज्ञ थी वह । गर्भवती हुई । गर्भावस्था के दोहद पूरे किए। उसने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम भरत कुमार रखा गया। राजा रानी पर बहुत प्रसन्न था। नवजात पूत्र के प्रति उसके मन में अगाध स्नेह था। राजा ने उस नई पटरानी से कहा-"भद्रे ! मैं तुम्हें वर देता हूँ, तुम यथेच्छ रूप में मांगो।" पटरानी ने कहा- “मैं आपका वरदान स्वीकार करती हूँ, उसे अपने पास सुरक्षित रख लेती हूँ, यथासमय मांग लूंगी।" राजा ने कहा- "बहुत अच्छा।" पटरानी द्वारा भरत के लिए राज्य की मांग समय बीतता गया। भरत कुमार बड़ा हो गया। पटरानी राजा के निकट पहुँची और निवेदन किया-'देव ! आपने मुझे वरदान दिया था। अब मैं उसे मांगना चाहती हूँ, पूरा करें।" "भद्रे ! जो चाहो, ले लो।" "देव ! मैं अपने पुत्र के लिए राज्य चाहती हूँ। मेरे पुत्र को राज्य प्रदान करें।" राजा यह सुनकर बहुत दुःखित हुआ, अप्रसन्न हुआ। उसने रानी की भर्त्सना करते हुए कहा-"चांडालिनी ! तेरा बुरा हो । मेरे दोनों पुत्र राम तथा लक्ष्मण अग्निपुंज के समान देदीप्यमान हैं। उनको नष्ट करवाकर अपने पुत्र को राज्य दिलाना चाहती हो, तुम कुछ भी नहीं सोचती।" राम, लक्ष्मण, एवं सीता द्वारा वन-गमन रानी यह सुनकर जल भुन गई । वह शयनागार में चली गई । तत्पश्चात् वह राजा से समय-समय पर पुनः पुनः राज्य की मांग करती रही। राजा ने अपने मन में विचार किया-स्त्रियों का स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है, उनमें कृतज्ञता नहीं होती। वे किए हुए उपकार को नहीं मानतीं, अपने सुहृज्जनों से भी द्रोह करती हैं। मुझे भय है, कहीं यह रानी असत्य-पत्र द्वारा या कल्पित राज-मुहर द्वारा मेरे पुत्रों की हत्या न करवा दे । राजा ने अपने दोनों पुत्रों को बुलाया तथा सारी स्थिति से उन्हें अवगत कराते हुए कहा-पुत्रो ! तुम्हारा यहाँ रहना संकट से खाली नहीं है । तुम किसी सामन्तराज्य में चले जाओ, अथवा वन में चले जाओ, वहीं रहो। मेरी मृत्यु हो जाने के पश्चात् यहाँ आना, अपना वंश परम्परागत राज्य अधिकृत कर लेना।" तत्पश्चात् राजा ने ज्योतिषियों को बुलाया और उनसे पूछा- "अब मेरी आयु कितनी शेष है ?" ज्योतिषियों ने कहा--"राजन् ! आपकी आयु १२ वर्ष और है।" ज्योतिषियों से यह जानकर राजा ने अपने दोनों पुत्रों को अपने पास बुलाया और कहा-"पुत्रो ! मेरी आयु १२ वर्ष शेष है । १२ वर्ष बाद तुम यहाँ आकर राज्य-छत्र धारण करो, मेरी यह भावना है।" उन्होंने कहा-"अच्छा, हम ऐसा ही करेंगे।" उन्होंने पिता को प्रणाम किया और आँखों में आंसू भरे महल से उतरे । यह सब जानकर सीता देवी ने कहा- "मैं भी अपने भाइयों के साथ ही जाऊंगी। वह अपने पिता के पास गई, उनको प्रणाम किया तथा रोती Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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