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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] केवली भगवान् ने लक्ष्मण तथा अंत में वे मोक्ष प्राप्त करेंगे । इस प्रकार सीता और राम के चरित्र का वर्णन कर गणधर गौतम ने महाराज श्रेणिक को कहा कि प्राणपण से शील का पालन करना, संयम सदाचार की आराधना करना और कभी किसी को मिथ्याकलंक न देना इत्यादि अनेक उच्च शिक्षाएँ इस आख्यान से प्राप्त होती हैं। उन्हें ग्रहण करना चाहिए । दशरथ जातक शास्ता द्वारा सम्बोध एथ लक्खण सीता च गृहस्थ के सम्बन्ध में जिसका पिता मर गया था, यह गाथा कही । कथा इस प्रकार है कथानुयोग - रामचरित : दशरथ जातक ४६६ रावण के आगे के भवों का वर्णन किया और बताया कि -: • भगवान् बुद्ध जेतवन में विहार करते थे, तब एक ऐसे एक मनुष्य के पिता की मृत्यु हो गई । वह अत्यधिक शोकान्वित हुआ। उसके मन में इतना उद्वेग उत्पन्न हुआ कि उसने अपने सारे काम-काज छोड़ दिए। वह एक तरह से पागल सा हो गया था । एक दिन प्रातःकाल शास्ता लोक-चिन्तन करते थे । उन्होंने इस बीच देखा कि वह मनुष्य स्रोतापन्न होने की संभावना लिए है । दूसरे दिन शास्ता ने श्रावस्ती में भिक्षाटन किया, भोजन किया । भिक्षुओं को बिदा किया। एक अनुगामी भिक्षु को साथ ले वे उस मनुष्य के घर गये । उसने शास्ता को सभक्ति प्रणाम किया। शास्ता ने उसके मधुर वाणी द्वारा सम्बोधित किया और पूछा - "उपासक ! चिन्तित हो ?" "हाँ, भन्ते ! पिता के चले जाने का विषाद मुझे बहुत दुःख दे रहा है ।" " उपासक ! देखो, जिन पुरावर्ती पंडितों ने - ज्ञानी जनों ने आठ लोक-धर्मों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर लिया, पिता की मृत्यु पर वे जरा भी शोकोद्विग्न नहीं हुए।" उपासक ने भगवान् से वह कथा कहने का अनुरोध किया । भगवान् ने पूर्व कथा का इस प्रकार आख्यान किया : वाराणसी-नरेश दशरथ राम, लक्ष्मण तथा सीता का जन्म पूर्ववर्ती समय का वृत्तान्त है, वाराणसी में महाराज दशरथ राज्य करते थे । वे चार अगतियों से दूर रहते थे । उनका राज्य संचालन धर्मानुगत था । उनके सोलह हजार रानियाँ थीं । उनमें जो सबसे बड़ी-पटरानी थी, उसके दो पुत्र और एक कन्या हुई। बड़े पुत्र का नाम राम पंडित था, दूसरे पुत्र का नाम लक्ष्मण कुमार था तथा कन्या का नाम सीता देवी था । Jain Education International 2010_05 भरत का जन्म : वरदान कुछ समय व्यतीत हुआ। महाराज दशरथ की पटरानी की मृत्यु हो गई । राजा इससे बहुत दुःखित हुआ, चिरकाल तक शोक-ग्रस्त रहा । मन्त्रियों ने राजा को बहुत कहा सुना, १. आधार - पउमचरियं, पद्मपुराण, उत्तरपुराण, पउमचरिउ, महापुराण, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, सीताराम चौपई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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