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तत्त्व : आचार: क
-रामचरित : दशरथ जातक
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को समझ नहीं सके । उनको सताने लगे । मुनि शान्तभाव से यह सब सहते रहे। शासनदेवता को यह सहन नहीं हुआ। उन्होंने वेगवती का मुख विकृत कर दिया । वेगवतो के बड़ी पीड़ा हुई। उसने मुनि के पास जाकर क्षमा मांगी और लोगों के समक्ष अपना अपराध स्वीकार किया कि मैने परिहास-हेतु मुनि पर मिथ्या कलंक लगाया था। मुनि सर्वथा निष्कलंक और निर्मल हैं। लोगों ने मुनि का बड़ा सम्मान-सत्कार किया। शासन देवता ने वेगवती को स्वस्थ कर दिया।
"वेगवती बहुत रूपवती थी। राजकुमार स्वयंभू ने वेगवती की याचना की। वेगवती के पिता श्रीभूति ने यह स्वीकार नहीं किया। स्वयंभू ने श्रीभूति की हत्या कर दी और वेगवती के साथ बलात्कार किया। वेगवती ने स्वयंभू को शाप दिया कि जन्मान्तर में मैं तुम्हारे विनाश का कारण बनूंगी। वेगवती ने हरि कान्ता नामक आर्या के पास प्रव्रज्या वीकार की। वह मरकर ब्रह्मदेव लोक में देव के रूप में उत्पन्न हई। वहाँ अपना देवायूष्य पूर्णकर राजा जनक की पुत्री सीता के रूप में उत्पन्न हुई । राजकुमार स्वयंभू का जीव आगे जाकर राक्षस राज रावण के रूप में उत्पन्न हुआ।"
सकल भूषण केवली ने बताया कि इस प्रकार पूर्व-मवगत वैर के कारण ये सब घटनाक्रम घटित हुए।
एक दिन देव-सभा में इन्द्र ने मोहनीय कर्म को बड़ा दुर्घर्ष बतलाते हुए कहा कि बड़ा आश्चर्य है, महापुरुष भी उसके वशगत हो जाते हैं। उदाहरणार्थ, इन्द्र ने राम, लक्ष्मण का नाम लिया। वह बोला-"उनमें इतना प्रगाढ़ प्रेम है कि वे एक दूसरे के बिना प्राण दे सकते हैं।"
राम-लक्ष्मण के पारस्परिक प्रेम की परीक्षा : लक्ष्मण द्वारा प्राण-त्याग
सभा में स्थित दो देवों को कुतूहल हुआ। उन्होंने चाहा कि वे राम और लक्ष्मण के प्रेम की परीक्षा करें। वे अयोध्या आये। देवभामा द्वारा राम की मृत्यु दिखाई । अन्तःपुर में हाहाकार मच गया। लक्ष्मण ने जब राम को मृत सुना तो उसके हृदय पर इतना आघात हुआ कि उसने तत्काल प्राण त्याग दिये । लक्ष्मण की मृत्यु देखकर देव हक्के-बक्के रह गये। उन्हें बहुत पश्चात्ताप हुआ, किन्तु, लक्ष्मण महाप्रयाण कर चुके थे। कोई उपाय नहीं था। रुदन-क्रन्दन और विलाप से राज-महल भर गया। चारों ओर शोक ही शोक व्याप गया।
इस घटना से राम के पुत्र लवण और अंकुश के मन में तीव्र वैराग्य हुआ। उन्होंने अमृत घोष नामक मुनि से प्रव्रज्या ग्रहण कर ली।
राम विक्षिप्त की ज्यों
लक्ष्मण की मृत्यु के इस दुःसह प्रसंग से राम होश-हवास गंवा बैठे। विक्षिप्त की ज्यों हो गये। उन्होंने लक्ष्मण के मत शरीर को उठा लिया। वे कहने लगे-"मेरा भाई मरा नहीं है, वह मूच्छित है।" सुग्रीव, विभीषण आदि ने लक्ष्मण की अन्त्येष्टि के लिए राम को बहुत समझाया, पर, वे नहीं माने । पागल की ज्यों वे उस कलेवर को कभी स्नान कराते, कभी वस्त्र पहनाते, कभी मुह में ग्रास देते । इस प्रकार मोह से मूच्छित हुए राम छः महीने तक मृत कलेवर को साथ लिये रहे।
राम विक्षिप्त हो गये हैं, यह समाचार जब इन्द्रजित् तथा सुन्द आदि राक्षसों के पुत्रों को मिला तो वे अनेक विद्याधरों को साथ लेकर अयोध्या पर चढ़ आये। राम यह देख
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