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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
कारण वे आपस में लड़कर मर गये । फिर वे अनेक भवों में भटकते रहे । धनदत्त भाई की मृत्यु से बड़ा दुःखित हुआ । वह घर से निकल पड़ा। भ्रमण करते हुए उसने एक साधु से धर्म-श्रवण किया, श्रावक व्रत स्वीकार किये । अपना आयुष्य पूर्णकर वह स्वर्ग में देव रूप में उत्पन्न हुआ । "देव आयुष्य पूर्ण कर उसने महापुर में पद्मरुचि नामक सेठ के रूप में जन्म लिया । सेठ ने एक दिन गोकुल में— गोशाला में एक बैल का मरते देखा। उसने उसे नवकार मन्त्र सुनाया | नवकार मंत्र के प्रभाव से वह बैल उसी नगर के राजा छत्र छिन्न की रानी श्रीकान्ता की कोख से राजकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ । उसका नाम वृषभध्वज रखा गया। एक बार वह राजकुमार गोकुल में गया। बैलों को देखने से उसको अपना पूर्व-भव स्मरण हो आया — उसको जाति स्मरण ज्ञान हो गया । अन्त समय में नवकार मंत्र सुनाकर अपना उपकार करने वाले सेठ की उसने गवेषणा करना चाहा । तदर्थ उसने एक चैत्य का निर्माण कराया । उसमें अपने पूर्व-भव की अन्तिम घटना अंकित करवा दी। अपने सेवकों को आदेश दिया कि जो इस घटना का रहस्य प्रकट करे, उसके सम्बन्ध में मुझे अवगत . उसे मेरे पास लेकर आना ।
कराना,
"एक दिन सेठ पद्मरुचि उस चैत्य में आया। उसने उस चित्र को बड़े ध्यान से देखा । वह चित्र से समझ गया कि मरते समय जिस बैल को मैंने नवकार मंत्र सुनाया था, यही बैल मरकर राजकुमार वृषभध्वज हुआ है। सेवक ने सेठ की भाव-भंगिमा देखकर राजकुमार को फौरन खबर दी । राजकुमार आया । सेठ मना करता रहा, पर, राजकुमार ने अपना उपकारी जानकर उसे प्रणाम किया, आभार व्यक्त किया। सेठ ने राजकुमार को श्रावक व्रत ग्रहण करने को प्रेरित किया । राजकुमार ने व्रत ग्रहण किये। वह उनका सम्यक् रूप में पालन करने लगा । राजकुमार तथा सेठ दोनों अपना आयुष्य पूर्ण कर अपने पुण्य-प्रभाव से दूसरे स्वर्ग में उत्पन्न हुए । पद्मरुचि अपना आयुष्य पूर्ण कर नन्द्यावर्त के राजा नंदीश्वर के घर पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । उसका नाम नयनानन्द रखा गया । बड़ा हुआ। राजा हुआ । राज्य-सुख भोगकर अंत में उसने दीक्षा ग्रहण की। काल-धर्म प्राप्त कर वह चतुर्थ देव लोक - माहेन्द्र कल्प में देव रूप में उत्पन्न हुआ । वहाँ अपना आयुष्य पूर्ण कर पूर्व विदेह में क्षेमापुरी के राजा विपुलवाह्न की रानी पद्मावती की कोख से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । उसका नाम श्रीचन्द्रकुमार रखा गया । राज्य-सुख भोगकर उसने समाधिगुप्त नामक मुनि के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। अपना आयुष्य पूर्णकर वह पाँचवें स्वर्ग ब्रह्मलोक का इन्द्र हुआ | देव आयुष्य पूर्णकर पद्मरुचि का जीव महा बलवान् बलदेव राम के रूप में उत्पन्न हुआ। वृषभध्वज अनुक्रम से सुग्रीव के रूप में उत्पन्न हुआ ।
" श्रीकान्त सेठ का जीव संसार चक्र में भटकता हुआ मृणालकन्द नामक नगर में राजा वज्रजम्बु के उसकी रानी हेमवती की कोख से स्वयंभू नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ । वसुदत्त का जीव उस राज के पुरोहित विजय के उसकी पत्नी रत्नचूला की कोख से श्रीभूति नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ । गुणवती का जीव श्रीभूति के उसकी पत्नी सारस्वती की कोख से वेगवती नामक पुत्री के रूप में उत्पन्न हुआ । वेगवती बड़ी हुई ।
" एक बार का प्रसंग है, सुदर्शन नामक प्रतिमा धारी मुनि आये । वेगवती ने उन पर असत्य कलंक लगाया कि मैंने इनको एक स्त्री के साथ विषय- सेवन करते देखा है। मुनि की निन्दा हुई। मुनि ने अभिग्रह किया कि जब तक मुझ पर लगाया गया मिथ्या कलंक दूर नहीं होगा, तबतक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा, कायोत्सर्ग में संलग्न रहूंगा । लोग मुनि
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