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तत्त्व : आचार । कथानुयोग]
कथानुयोग.-रामचरित : दशरथ जातक
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लवण एवं अंकुश द्वारा अयोध्या पर चढ़ाई
लवण तथा अंकुश का अयोध्या पर चढ़ाई करने का मंकल्प था। उन्होंने अपनी मां से आज्ञा चाही। मां ने कहा कि अपने पिता राम तथा चाचा लक्ष्मण से युद्ध करने में अनर्थ आशंकित है । तब लवण और अंकुश ने कहा- "मां ! हम युद्ध में पिता तथा चाचा का वध नहीं करेंगे, उनका अहंकार भग्न करेंगे।"
___इस प्रकार अपनी माता को आश्वासन देकर उन्होंने अयोध्या पर चढ़ाई की। नारद मुनि भामंडल के पास गये। उन्होंने सीता-निर्वासन, लवण तथा अंकुश का जन्म, अयोध्या पर चढ़ाई आदि सब समाचार भामंडल को बताये। भामंडल सपरिजन सीता के पास आया। सीता को साथ लेकर लवण और अंकुश को समझाने गया । लवण और अंश ने भामंडल आदि का समाधान कर उन्हें अपने समर्थन में ले लिया। राम और लक्ष्मण रणक्षेत्र में
राम और लक्ष्मण अपने-अपने रथ पर आरूढ होकर ससैन्य रण क्षेत्र में उतरे । भीषण युद्ध प्रारंभ हुआ। घोर बाण वृष्टि कर लवण एवं अंकुश ने युद्ध में तहलका मचा दिया। राम, लक्ष्मण की सेना घबरा उठी। लवण तथा अंकश राम एवं लक्ष्मण से भिड़ गये। लवण और अंकुश ने घोर बाण-वर्षा द्वारा उनके रथ चकना-चूर कर दिये, घोड़ों को मार डाला। बालकों का अद्भुत पराक्रम देखकर राम, लक्ष्मण विस्मित हो उठे। उनके बलदेव एव वासुदेव के दिव्य प्रभावापन्न अस्त्र काष्ठ की ज्यों प्रभाव-शून्य हो गये। जिस महान् पराक्रमी लक्ष्मण ने रावण जैसे प्रबल योद्धा को रण में परास्त कर डाला, मार डाला, वह लक्ष्मण अंकुश के समक्ष अपने को असहाय जैसा अनुभव करने लगा। जब कोई अन्य उपाय उसने नहीं देखा तो अन्त में उसे चक्र-रत्न का प्रयोग करना पड़ा। लक्ष्मण द्वारा छोड़ा गया चक्र अंकुश के निकट पहुँचा। उसने अंकुश की तीन बार प्रदक्षिणा की और वह वापस लक्ष्मण के पास लौट आया। लक्ष्मण ने दूसरी बार फिर चक्र छोड़ा । पहली बार की तरह चक्र वापस लौट आया। तीसरी बार भी वैसा ही हुआ; क्योंकि चक्ररत्न गोत्रीय जनों को आहत नहीं करता । लक्ष्मण लवण और अंकुश का परिचय नहीं जानता था; अत: चक्ररत्न के निष्प्रभाव सिद्ध होने पर उसे आश्चर्य हआ।
निमितज्ञ सिद्धार्थ मुनि ने सबको वस्तु-स्थिति से अवगत कराया, लवण और अंकुश का परिचय दिया। राम तथा लक्ष्मण अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होने शस्त्रास्त्र त्याग किये। उनसे मिलने के लिए आगे बढ़े। लवण और अंकुश ने रथ से उतर कर उनको सादर, सविनय प्रणाम किया । युद्ध का क्षुब्ध बातावरण हर्ष एवं उल्लास में परिणत हो गया । अपने समग्र पारिवारिक जनों से संपरित लवण और अंकुश सानन्द अयोध्या में प्रविष्ट हुए। सीता का अयोध्या-आगमन
एक दिन का प्रसंग है, सुग्रीव एवं विभीषण ने राम से निवेदन किया कि पति से, पुत्रों से विरहित सीता जितनी दुःखी है, उसकी कल्पना करना तक दुःशक्य है। उस पर मानो दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा है। पति यहाँ, पुत्र यहाँ, सारा परिवार यहाँ, वह अकेली पुंडरीकपुरी में बैठी है।
राम ने कहा- सीता का दुःख मैं जानता है, उसके सतीत्व तथा शील की पवित्रता मैं जानता हूँ, पर, क्या करूं, लोकापवाद के कारण सीता का परित्याग करना पड़ा। मेरा
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