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________________ ४६२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ राम-"लक्ष्मण ! राजा का जो दायित्व और कर्तव्य है, हम उससे कभी मुंह नहीं मोड़ सकते। लोक-मर्यादा का लंघन नहीं कर सकते। इसलिए छाती पर पत्थर रखकर भा यह कार्य करना ही होगा।" लक्ष्मण ने राम को बहुत रोका, पर, राम नहीं माने। उन्होंने सारथी कृतान्तमुख को बुलाया और उसे आदेश दिया कि तीर्थयात्रा गत दोहद पूर्ति के मिस से सीता को यहाँ से ले जाओ और दण्डाकार अटवी में छोड आओ। सारथी को राजाज्ञा का पालन करना पड़ा। उसने सीता को वन में छोड़ दिया, राम की आज्ञा से अवगत करा दिया। सीता के दुःख का पार नहीं था। वह बेहोश होकर गिर पड़ी। होश आने पर वह अपने भाग्य को कोसने लगीक्या मेरा जन्म केवल दुःखों को ही झेलने के लिए हुआ है ? धर्म ही दु:खियों का एक मात्र सहारा है, यह सोचकर वह नवकार-मंत्र के जप में लीन हो गई। पुंडरीक पुर के राजा वज्रजंघ ने, जो हाथियों को पकड़ने के लिए वन में आया हुआ था, सीता को देखा। सारी स्थिति की जानकारी प्राप्त की। उसने सीता से कहा"तुम मेरी धर्म की बहिन हो। तुम मेरे नगर में चलो, सतीत्व की रक्षा करते हुए धर्म का आराधना करो। मैं तुम्हारी सुरक्षा की पूरी व्यवस्था रखूगा।" सीता ने वज्रजंघ के हृदय की पवित्रता को समझा। वह उसके साथ पुण्डरीकपुर आ गई। राजा ने बड़े सम्मान के साथ उसकी व्यवस्था की। आवास हेतु एक पृथक् महल दे दिया। सीता के सतीत्व की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी । राम के निर्दयतापूर्ण व्यवहार की सब कटु आलोचना करने लगे। राम ने सीता को वन में छुडवा तो दिया. पर, मन-ही-मन वे उसके वियोग में अत्यंत दु:खित हो गये । भीतर-ही-भीतर वे दुःख की अग्नि से जलते जाते थे, बाहर किसी को कुछ नहीं कह सकते थे। मन न होते हुए भी कर्त्तव्य-निर्वाह के भाव से राज्य करते थे। दो पुत्रों का जन्म सीता के दो पुत्र हुए। राजा वज्रजंघ ने मानजों का सोत्साह जन्मोत्सव मनाया। अनंगलवण तथा मदनांकुश उनके नाम रखे गये। संक्षेप में वे लवण, अंकुश या लव, कुश के नाम से विश्रुत हुए । क्रमश: दोनों कुमार बड़े हुए । वे बहत्तर कलाओं में प्रवीण हुए। बड़े वीर तथा साहसी थे। राजा वज्रजंघ ने अनंग लवण के साथ शशिचूला आदि अपनी बत्तीस कन्याओं का विवाह किया। वज्रजंघ ने राजकुमार मदनांकुश के लिए पृथ्विीपुर के राजा पथ से उसकी कन्या कनकमाला की मांग की। राजा पृथु ने अज्ञात कुल' शील को अपनी कन्या न देने की बात कहते हुए वज्रजंघ का अनुरोध ठुकरा दिया। वज्रजंघ के पुत्रों तथा लवण एवं अंकुश ने वज्रजंघ की आज्ञा से, सीता की स्वीकृति से राजा पृथु पर आक्रमण किया । तुमुल युद्ध हुआ। लवण और अंकुश के प्रबल पराक्रम से पृथु की सेना के पैर उखड़ गये । पृथु पराजित हो गया। उसने अपनी पुत्री कनकमाला का अंकुश के साथ विवाह कर दिया। वे कुछ दिन पृथ्विीपुर रहे। इस बीच नारद मुनि वहाँ आये । उन्होंने लवण एवं अंकुश को उनका यथार्थ परिचय दिया। उनके पिता-माता राम एवं सीता से सम्बद्ध घटना उन्हें सुनाई । अपनी निरपराध मां के साथ किये गये दुर्व्यवहार से वे बहुत उद्विग्न तथा क्षुब्ध हुए। लवण एवं अंकुश ने वज्रजंघ की सहायता से अनेक देशों को जीता । अपनी माँ के पास आए। मां अपने पुत्रों की विजय तथा समृद्धि से बहुत हर्षित हुई । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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