________________
४६० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड : ३ जाना; इत्यादि घटनाएं घटित होने के अनन्तर आपका विशेष संवाद, समाचार वहां न पहुँचने से भरत तथा माताएं बहुत चिन्तित हैं।"
राम, लक्ष्मण ने अयोध्या का समाचार देने के लिए नारद मुनि का आभार माना, उनका स्वागत-सत्कार कर उन्हें विदा किया।
राम का अयोध्या आगमन
राम ने विभीषण से कहा-"अब हम लोग अयोध्या जाना चाहते हैं।" विभीषण ने उन्हें सोलह दिन और रुकने की प्रार्थना की। वहाँ से कुशल-संवाद कहने हेतु भरत के पास दूत भेजा । दूत ने भरत को, माताओं को, परिजनों को कुशल-समाचार कहे। सभी बहुत प्रसन्न हए । दूत का बहमूल्य वस्त्रों द्वारा, आभरणों द्वारा सत्कार किया। अयोध्या के नागरिक सब समाचार जानकर अत्यन्त हर्षित हुए। अयोध्या में स्वागत की तैयारियां की जाने लगीं।
विभीषण के स्नेहपूर्ण अनुरोध से राम लक्ष्मण आदि सोलह दिन लंका में और रहे। तत्पश्चात् सभी पुष्पक विमान में आरूढ़ होकर अयोध्या आये। भरत ने चतुरंगिणी सेना के साथ सामने आकर राम का अत्यन्त आदर, श्रद्धा तथा स्नेह के साथ स्वागत किया। राम, लक्ष्मण, सीता आदि सभी अयोध्या में प्रविष्ट हुए। माताओं ने उनका सस्नेह स्वागत किया। उन्होंने माताओं के चरण-स्पर्श कर अत्यन्त आदर के साथ उन्हें प्रणाम किया। भरत, शत्रुघ्न ने बड़े भाइयों को प्रणाम किया। अयोध्या में सर्वत्र आनन्द छा गया। हर्षोल्लास से नागरिकों ने बड़ा महोर व मनाया।
भरत का वैराग्य : दीक्षा - भरत एक दिन विरक्त भाव से राम के पास आया और कहने लगा-"मैं इस असार संसार का त्याग कर संयम लेना चाहता हूँ, आप राज्य सम्भालिए, मुझे दीक्षित होने की आज्ञा दीजिए। मैं तो पहले भी दीक्षा ले लेना चाहता था, पर, माता के आग्रह से और आपके आदेश से मुझे कुछ समय के लिए राज्य सम्भालना पड़ा।"
राम ने भरत को बहुत समझाया, पर, वह संयमोन्मुख विचारों पर दृढ़ रहा । तत्पश्चात् कुलभूषण नामक केवली अयोध्या पधारे भरत ने एक सहस्र राजाओं के साथ उनके पास दीक्षा स्वीकार की।
सुग्रीव आदि विद्याधरों ने राम से प्रार्थना की-"आप राज्य ग्रहण करें।"
राम ने कहा- "लक्ष्मण वासुदेव है । उसका अभिषेक करो।" विद्याधरों ने रामलक्ष्मण का राज्याभिषेक किया। राम बलदेव तथा लक्ष्मण वासुदेव के रूप में सत्कृत हुए। सीता तथा विशल्या क्रमशः पटरानियों के पद पर संप्रतिष्ठ हुई। विभीषण को लंका का राज्य, सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य, हनुमान को श्रीपुर का राज्य, चन्द्रोदर के पुत्र विरोध को पाताल-लंका का राज्य, रत्नजटी को गीत नगर का राज्य तथा भामण्डल को दक्षिण वैताढ्य का राज्य सौंपा गया। राम, लक्ष्मण ने अर्ध-भरत क्षेत्र को साधा, विजय वैजयन्ती फहराई, सुख के साथ राज्य करने लगे।
एक दिन सीता को स्वप्न आया। उसने देखा-दो सिंह आकाश से उतरकर उसके मुंह में प्रवेश कर रहे हैं, वह स्वयं विमान से गिरकर भूमि पर गिर रही है । सीता ने राम से अपने स्वप्न की बात कही। राम ने विचार कर बताया कि इस स्वप्न के अनुसार तुम परम
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org