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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-- रामचरित : दशरथ जातक ४५६ ही रावण मरा, उसकी समस्त सेना राम की सेना में सम्मिलित हो गई। राम ने विजय प्राप्त की। विभीषण द्वारा शोक ज्यों ही रावण की मृत्यु हुई, विभीषण का भ्रातृ-स्नेह जगा। वह शोक-संविग्न हो उठा। भाई के बिना उसे अपना जीवन निरर्थक लगा। वह आत्मघात करने को तत्पर हुआ । राम ने उसे प्रतिबोध दिया, शान्त किया। जब राम ने मन्दोदरी आदि रानियों को फूट-फूट कर रोते, विलाप करते, करुण-क्रन्दन करते देखा तो वे वहाँ आये, उन्हें सान्त्वना दी, समझाया और रावण की दाह-क्रिया की तैयारी की। इन्द्रजित्, मेघनाद एवं कुम्भकर्ण सभी मुक्त कर दिये गये। राम तथा लक्ष्मण की अन्त्येष्टि में सम्मिलित हुए, पद्म सरोवर पर उसे जलांजलि अर्पित की। अप्रमेयबल मुनि का लंका-आगमन दूसरे दिन का प्रसंग है, छप्पन हजार श्रमणों के विशाल समुदाय के साथ अप्रमेय बल नामक मुनि लंका में पधारे, बगीचे में रुके । उनको आधी रात के समय वहाँ केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ। राम, लक्ष्मण, इन्द्रजित्, कुम्भकर्ण, मेघनाद आदि सभी विशिष्ट जन केवली भगवान् को वन्दन-नमन करने गये। मन्दोदरी पति, पुत्र तथा अन्य पारिवारिक जनों के मृत्यु-शोक में बहुत दुःखित थी। उसका संसार उजड़ गया था। संयमश्री नामक प्रवतिनी ने प्रतिबोध दिया। मन्दोदरी चन्द्रनखा आदि अट्ठावन हजार महिलाओं के साथ प्रव्रजित हुई। राम और सीता का मिलन राम और लक्ष्मण सुग्रीव, हनुमान्, भामंडल आदि के साथ लंका नगरी में आये । उनके स्वागतार्थ समस्त नगरी अत्यन्त सुन्दर रूप से सजी थी। पुष्प गिरि के निकटवर्ती पद्मोद्यान में सीता थी। राम वहाँ जाकर उससे मिले । विरहाग्नि से दग्ध सीता ने ज्यों ही राम के दर्शन किये, वह हर्ष-विभोर हो उठी। उसकी खुशी का पार नहीं था। देवताओं ने प्रसन्न होकर आकाश से पुष्पवृष्टि की। सर्वत्र सीता के शील का जय-जयकार होने लगा। लक्ष्मण ने सीता के चरण छूए। भाई भामंडल, सुग्रीव, हनुमान आदि सभी ने सीता को सादर अभिवादन किया। तदनन्तर राम, सीता, और लक्ष्मण हाथी पर आरूढ़ हुए, रावण के महल में आये। शोक-पीड़ित रत्नास्रव, सुमाली, विभीषण, माल्यवान आदि को सान्त्वना दी। - राम ने विभीषण को लंका का राज्य सौंपा। विभीषण ने सबके प्रति अपना आदर भाव व्यक्त किया। राम, सीता तथा लक्ष्मण, विशल्या आदि लंका में सानन्द रहे। लक्ष्मण की अन्य पाणिग्रहीताओं को भी वहाँ बुला लिया गया। राम और लक्ष्मण के साथ अनेक विद्याधरकन्याओं का पाणि-ग्रहण सम्पन्न हुआ। एक दिन का प्रसंग है, नारद मुनि अयोध्या से आकाश-मार्ग द्वारा विचरण करते हुए लंका आये। राम ने उनसे भरत का कुशल-क्षेम पूछा। नारद ने कहा-"वैसे सब कुशल हैं, पर, सीता-हरण, रणस्थल में लक्ष्मण की मूर्छा, विशल्या, का अयोध्या से लंका ले जाया Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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