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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
किये। उसने सीता से कहा- मैं प्रेम के वश होकर तुम्हें यहाँ लाया । व्रत-भग्नता के भय से तुम्हें स्वायत्त नहीं किया । अब भी यदि तुम स्वेच्छा से मेरी अधीनता स्वीकार नहीं करोगी तो मुझे बल-प्रयोग करने को बाध्य होना पड़ेगा।"
सीता बोली- 'यदि मेरे प्रति तुम्हारा स्नेह है तो सुन लो, वस्तु-स्थिति यह है, जब तक राम, लक्ष्मण तथा भामंडल जीवित हैं, तभी तक मेरा जीवन है ।'' ज्योंही उसके मुंह से यह निकला, वह मरणासन्न हो गई, भूमि पर गिर पड़ी।
रावण मन-ही-मन बहुत पछताया--- मैंने राम, सीता का वियोग कराकर वास्तव में बहुत बुरा काम किया। भाई विभीषण ने मुझे बड़ी उत्तम राय दी थी। उसे मैंने नहीं माना, उलटे उससे विरोध बांधा, वैर किया। मैंने कुबुद्धि के कारण वास्तव में रत्नास्रव के वंश को कल वित किया है । अब मैं बड़ी विषम स्थिति में पड़ गया है। यदि सीता को लौटाता हूँ तो लोग कहेंगे कि लंकापति रावण राम, लक्ष्मण से भयभीत हो गया। प्रतिष्ठा का प्रश्न है। अब तो मुझे युद्ध करना ही पड़ेगा । हाँ, इतना करूंगा, अब युद्ध में राम, लक्ष्मण को छोड़कर अन्यों को ही मारूंगा।
रावण एवं लक्ष्मण का भीषण युद्ध
रावण युद्ध का भीषण संकल्प लिये लंका से निकला । मार्ग में उसे तरह-तरह के बुरे शकुन हुए। अमात्यों, सेनापतियों तथा विशिष्ट नागरिक जनों ने उसे रोका, पर, वह नहीं माना । बहुरूपिणी विद्या द्वारा उसने अपने आगे हजार हाथियों की रचना की। अपने सदृश दश हजार विद्याधरों की रचना की। रणक्षेत्र में आया।
राम केसरी रथ पर और लक्ष्मण गरुड रथ पर आरूढ हुए। सभी योद्धा सन्नद्ध हुए। उत्तम शकुन हुए। दोनों सेनाएं भिड़ गई। भयानक युद्ध होने लगा। खून की नदियाँ बहने लगीं।
रावण तथा लक्ष्मण का संग्राम शुरू हुआ। रावण ने लक्ष्मण पर भीषण बाण-वर्षा की। लक्ष्मण ने कंक-पत्र द्वारा उसे निरस्त कर दिया। रावण नि:शस्त्र हो गया। उसने रूपिणी विद्या का प्रयोग किया। रावण कहीं मुर्दे की ज्यों पड़ा हआ दीखता, नाना रूपों में नाना अवस्थाओं में दीखता, कहीं सहस्रों भुजाओं से युद्ध करता दीखता, विविध अस्त्र प्रक्षिप्त करता । लक्ष्मण ने इन सबको निष्फल, निष्प्रभाव कर दिया। तब रावण ने अपने अन्तिम अस्त्र चक्ररत्न को स्मरण किया। चक्ररत्न हजार आरों से युक्त था, मणिमय, ज्योतिर्मय एवं अमोघ था। चक्ररत्न अबाध गति से चलता हआ लक्ष्मण के हाथों पर अव. स्थित हो गया। समग्र सेना में लक्ष्मण के वासुदेव-रूप के प्राकट्य से असीम आनन्द हुआ।
लक्ष्मण के हाथ रावण की मौत
रावण प्रति वासुदेव था। लक्ष्मण के वासुदेव-रूप में प्रकट होने पर वह अपने किए पर पछताने लगा। विभीषण ने उपयुक्त अवसर देखकर एक बार फिर रावण को समझाने का प्रयास किया, पर, तब भी रावण अहंकार से दृप्त था। नहीं माना। कहने लगा-"चक्ररत्न के कारण भय दिखाना चाहते हो?"
लक्ष्मण ने देखा-रावण की धृष्टता एवं अहंमन्धता सीमा पार कर गई है। उसने उस पर चक्ररत्न का प्रहार किया। प्रहार से आहत होकर रावण भूमि पर गिर पड़ा । ज्यों
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