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________________ तत्व : आंचार : कथानुयोग ] कथानुयोग--रामचरित : दशरथ जातक ४५७ राम ने कहा- "रावण को जाकर कह दो, मुझे सीता के अतिरिक्त राज्य आदि से कोई प्रयोजन नहीं है। सीता को देना संधि की पहली शर्त होगी। रावण के भाई, पुत्र आदि को मुक्त करने को हम सहमत हैं।" दूत ने कहा-"रावण की अपरिमेय शक्ति है। आप ऐसा न करें। सीता तथा राज्य-दोनों से ही आपको हाथ धोने पड़ेंगे।" दूत के वचन पर भामंडल को बड़ा क्रोध आया। उसने उसका वध करने को तलवार उठाई । लल्मण ने कहा-"दूत अवध्य है, उसे न मारे।" भामंडल रुक गया। दूत अपमानित होकर रावण के पास गया और कहा कि राम जब तक जीवित हैं, सीता को नहीं छोड़ सकते। रावण द्वारा बहुरूपिणी विद्या की साधना रावण ने सोचा -मुझे बहुरूपिणी विद्या सिद्ध कर दुर्जेय राम को जीतना चाहिए । रावण तथा मंदोदरी ने बड़े उत्साह से अष्टाह्निक महोत्सव आयोजित किया। नगर में सर्वत्र अमारि घोषणा करवाई, शीलवत पालने की आज्ञा प्रसारित की। रावण आयम्बिल तप के साथ निश्चल ध्यानपूर्वक जप-साधना करने लगा। रावण बहुरूपिणी विद्या साधने में लगा है, यह ज्ञात होने पर वानर सेना में बड़ी चिन्ता व्याप्त हो गयी। विभीषण ने राम से कहा-"रावण को नियंत्रित करने का यह उपयुक्त अवसर है।" नीति-परायण राम ने कहा-"रावण इस समय युद्ध-विरत है, जपनिरत है, ऐसी स्थिति में उसका वध करना उचित नहीं है। वह विद्या सिद्ध न कर पाए, इसके लिए और जो भी उपाय हो सके, हमें करने चाहिए।" विघ्न-बाधा विभीषण ने वानर-सेना को कहा- 'लंका में जाओ। वहाँ उपद्रव करो।" वानरों ने वैसा ही किया। लंका के नागरिक पीड़ित एवं उद्विग्न हुए। वे कोलाहल करने लगे। देवताओं ने इसके लिए राम को उलाहना देते हुए कहा-"आप तो न्याय-परायण हैं, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए।" ____ लक्ष्मण ने उनसे कहा-"नागरिकों को सताने के लिए नहीं, प्रत्युत् रावण बहुरूपिणी विद्या सिद्ध न कर पाए, इस उद्देश्य से ये उपद्रव किये गये हैं। इनके पीछे कोई अन्य दुर्भावना नहीं है। आप अन्याय का पक्ष न लें, मध्यस्थ-भाव से रहें।" राम ने अंगद आदि वीरों को लंका में भेजते हुए कहा- "जाओ, रावण को क्षुब्ध करो।" अंगद रावण के पास गया और उसे फटकारते हुए कहा-"चोर की ज्यों सीता का अपहरण किया, यहाँ तप का दम्भ भरते हो। मैं तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारे अन्त:पुर की दुर्दशा कर डालूंगा।" यों कहकर अंगद ने मन्दोदरी के आभूषण और वस्त्र छीन लिये, बाल पकड़कर उसे घसीटने लगा। मन्दोदरी विविध प्रकार से विलाप करने लगी और रावण से प्रार्थना करने लगी- "मुझे अत्याचार से बचाएं, इनसे छुड़ाएं।" पर, रावण अपने ध्यान में, जप में, अविचल बैठा रहा । उसके निश्चल, अडिग ध्यान से बहुरूपिणी विद्या सिद्ध हो गई। विद्या सिद्ध हो जाने पर रावण परीक्षण हेतु उद्यान में गया। विविध रूप धारण ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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