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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
प्रभावित हुए। उन्होंने भी प्रव्रज्या स्वीकार कर ली।
अनंगसुन्दरी में अत्यधिक तपोबल था, शक्ति थी। वह चाहती तो अजगर को रोक देती, पर, उसने समभावपूर्वक उपसर्ग सहन किया। वह मर कर एक देवी के रूप में उत्पन्न हुई। पुण्यवसु विद्याधर भी विरक्त हुआ, दीक्षा ली, तपश्चरण किया, अपना आयुष्य पूर्णकर देवरूप में उत्पन्न हुआ।
वही देवी अपना देवायुष्य पूर्णकर द्रोणमुख की पुत्री विशल्या के रूप में उत्पन्न हुई और उस देव ने लक्ष्मण के रूप में जन्म लिया। पूर्व जन्म में आचीर्ण तप के प्रभाव से विशल्या के स्नान के पानी द्वारा सब प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं।
विद्याधर ने कहा-"विशल्या के स्नानोदक से लक्ष्मण भी स्वस्थ हो जायेगा।"
राम ने जाम्बवंत आदि मंत्रियों के परामर्श से भामण्डल को अयोध्या भेजा। सारा वृत्तान्त सुनकर भरत बहुत उद्विग्न हुआ। कार्य की त्वरा देखते भरत ने यही निर्णय किया, विशल्या का स्नानोदक भिजवाने के बदले स्वयं विशल्या को ही भेजना उपयुक्त होगा। भरत को स्मरण आया, मुनिवर ने यह भी कहा था कि विशल्या का लक्ष्मण के साथ पाणिग्रहण होगा। भरत ने द्रोणमुख को कहलवाया-वे विशल्या को भिजवाएं । द्रोणमुख सहमत नहीं हुआ। तब कैकेयी ने भाई को समझाकर विशल्या को अपनी सखियों सहित विमान द्वारा लका के रण-क्षेत्र में भिजवाया।
विशल्या पहुँची। राम ने उसका स्वागत किया। उसने लक्ष्मण के शरीर को छुआ। लक्ष्मण के हृदय से शक्ति निकली। वह अग्नि-ज्वालाएं प्रक्षिप्त करती हुई बाहर जाने लगी। हनुमान ने शक्ति को पकड़ लिया। शक्ति स्त्री के रूप में परिणत हो गई। उसने कहा"मैं अमोघ विजया नामक शक्ति हूँ। एक बार का प्रसंग है, मन्दोदरी देवाराधना में नृत्यनिमग्न थी। नृत्य के साथ बजती वीणा का तार टूट गया। तब रावण ने अपने बाहु की नस निकालकर वीणा में लगा दी, जिससे वाद्यक्रम, नृत्यक्रम भग्न नहीं हुआ। इस पर नाग देव ने रावण को अजेय शक्ति प्रदान की। आज तक उस शक्ति को कोई नहीं जीत सका। पर, विशल्या के तप के प्रभाव से वह पराभूत हो गई। मैं वही शक्ति हूँ। क्षमा-याचना करती हैं।" तब हनुमान् ने उसे मुक्त किया।
लक्ष्मण को होश आया। राम ने रावण द्वारा शक्ति-प्रहार तथा विशल्या द्वारा जीवन-संचार के सम्बन्ध में उसे बताया। सुभटवृन्द हर्ष से उत्सव मनाने लगे । लक्ष्मण ने कहा-"रावण के जीवित रहते यह कैसा उत्सव !" राम बोले- "तुम्हारे जैसे योद्धा के होते रावण मत तुल्य ही है।" विशल्या ने सभी क्षत-विक्षत योद्धाओं को स्वस्थ कर दिया। विशल्या का लक्ष्मण के साथ पाणिग्रहण हो गया।
रावण ने अपने गुप्तचरों द्वारा सुना--लक्ष्मण स्वस्थ हो गया है तो उसने मगांक नामक अपने मंत्री को बुलाया और उससे परामर्श किया। मन्त्री ने कहा-"राम लक्ष्मण दुर्जेय हैं, वे अनुपम प्रतापशाली हैं। उनकी शक्ति उत्तरोत्तर वृद्धिशील है। ऐसी स्थिति में यही उचित प्रतीत होता है, आप सीता को उन्हें लोटा दें, सन्धि कर लें।"
रावण को सन्धि कर लेने की बात तो जंची, पर, आंशिक रूप में। उसने राम के पास अपना दूत भेजा, उस द्वारा कहलवाया- “सीता तो लंका में ही रहेगी, उसे नहीं दे सकूँगा, पर, लंका के दो भाग आपको दे दूंगा। आप मेरे भाई तथा पुत्रों को मुक्त कर दीजिए । यों हम लोग सन्धि कर लें, युद्ध बन्द कर दें।"
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