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________________ ४५४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड :३ मैदान छोड़कर भागने लगी। राक्षसों को जब भागते देखा तो हत्थ तथा विहत्थ नामक राक्षस वहां आये, डट गये, युद्ध करने लगे। राम ने नल तथा नील को उनका सामना करने की प्रेरणा दी । नल और नील आये, उनसे लड़े, उन्हें परास्त किया। यों युद्ध चलते-चलते सूर्यास्त हो गया। नियमानुसार सूरज छिपते ही युद्ध बन्द हो गया। दूसरे दिन युद्ध प्रारंभ हुआ। वानर सेना जब कुछ कमजोर पड़ने लगी तो हनुमान् तत्काल युद्ध क्षेत्र में कूदे। रावण के पक्ष के राजा वज्रोदर ने हनुमान् पर प्रहार किया। उसका कवच भग्न कर दिया। हनुमान ने तलवार द्वारा उसका मस्तक काट डाला। तत्पश्चात् हनुमान् रावण के पुत्र जम्बुमाली को मारने लगा तो कुंभकर्ण उसे बचाने त्रिशूल लेकर दौड़ा । चन्द्ररश्मि, चन्द्राभ, रत्नजटी, तथा भामंडल उस पर झपटे। उसने उन पर दर्शनावरणी विद्या का प्रयोग किया, जिससे वे निद्रा-घूणित हो गये । सुग्रीव ने प्रतिबोधिनी विद्या द्वारा उन्हें जागरित किया। फिर मेघवाहन ने भामंडल को, इन्द्र जित् ने सुग्रीव को तथा कुम्भकर्ण ने हनुमान् को नागपाश द्वारा बाँध लिया। विभीषण ने राम तथा लक्ष्मण से कहा कि हमारे प्रधान वीर नागपाश द्वारा बाँध लिये गये हैं, हमें तत्काल इसका उपाय करना चाहिए। राम ने अंगद की ओर इशारा किया। अंगद कुम्भकर्ण से जा भिड़ा। हनुमान ने नागपाश भिन्न कर डाला। इन्द्रजित् नागपाश से बंधे भामंडल तथा सुग्रीव को वहाँ से ले चला। राम के आदेश से लक्ष्मण ने गरुड़ाधिप देव का स्मरण किया। देव प्रकट हआ। उसने राम को सिंह-विद्या, हल, मुसल और लक्ष्मण को गरुड-विद्या, वज्रबदन गदा तथा शस्त्रास्त्र एवं कवच पूर्ण दो रथ दोनों भाइयों को दिये । राम, लक्ष्मण उन रथों पर आरूढ हुए, हनुमान् को साथ लिया। वे रणक्षेत्र में उतरे । ज्योंही गरुडध्वज को देखा, नागपाश पलायन कर गये । सुग्रीव भामंडल आदि बन्धन-मुक्त हुए। कुछ समय पश्चात् इन्द्रजित् मेघ वाहन तथा कुंभकर्ण नागपाश द्वारा बांध लिये गये, वानर-सेना में ले आये गये। लक्ष्मण की मूर्छा रावण ने क्रुद्ध होकर युद्ध में बड़ा भयानक रूप धारण कर लिया। उसने लक्ष्मण पर अग्निज्वालामय शक्ति द्वारा प्रहार किया। प्रहार से लक्ष्मण को असह्य वेदना हुई। वे बेहोश हो गये। राम ने जब अपने भाई की यह हालत देखी, तो वे ऋद्ध होकर रावण पर टूट पड़े। उन्होंने उसका रथ, छत्र और धनुष नष्ट-भ्रष्ट कर डाला, उस पर भीषण प्रहार किये। रावण भयभीत हो गया, काँप उठा। वह नये-नये वाहन लेकर युद्ध में उतरता रहा । राम ने छः बार उसका रथ भग्न कर डाला, उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया। अन्त में वह धैर्यहीन होकर भाग छटा. लंका में प्रविष्ट हो गया, पर, उसे इस बात की खशी थी कि उसने लक्ष्मण को मार गिराया है। राम लक्ष्मण के पास आये । लक्ष्मण की देह को मत सदश देखकर उन्हें असह्य वेदना हई। वे मच्छित हो गये। कछ देर में उन्हें होश आया। तब जाम्बवंत विद्याधर ने कहा"लक्ष्मण की अभी मृत्यु नहीं हुई है । शक्ति-प्रहार से वे मूच्छित हैं । उपचार द्वारा इन्हें रातरात में स्वस्थ किया जा सकता है। यदि प्रात:काल तक उपचार द्वारा हम ठीक नहीं कर सके तो फिर सर्य-किरण का स्पर्श होते ही इनका शरीर प्राण-शुन्य हो जायेगा। राम ने धीरज धारण किया। लक्ष्मण के शरीर को सुरक्षित रखने की सुव्यवस्था की। सब उपचार के सम्बन्ध में सोचने लगे। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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