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________________ तस्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-रामचरित : दशरथ जातक विभीषण राम के साथ विभीषण ने रावण को समझाया- 'आप युद्ध न करें। युद्ध का परिणाम विनाश है। आप सीता राम को लौटा दें, परस्पर सुलह कर लें।" रावण ने विभीषण की बात मानना तो दूर रहा, प्रत्युत् उस पर बड़ा क्रोध किया। दोनों परस्पर भिड़ गये। कुंभकर्ण दोनों के बीच में पड़ा, उन्हें लड़ने से रोका । विभीषण अपनी तीस अक्षौहिणी सेना के साथ हंस-द्वीप गया। उसके वहाँ पहुँचते ही वानर सेना में खलबली मच गई। तब राम ने अपना धनुष उठाया, लक्ष्मण ने अपनी चन्द्रहास नामक तलवार उठाई। विभीषण राम की सेना से कुछ दूर रुक गया। उसने राम के पास अपना दूत भेजा, दूत द्वारा कहलवाया-"अपने भाई रावण को मैंने समझाया कि आप सीता को लौटा दें, युद्ध टालें। रावण ने मेरा सुझाव नहीं माना, वह उलटा मुझ पर उबल पड़ा, बहुत क्रुद्ध हो गया। मै उसे छोड़कर आपकी सेवा में आया हूँ, स्वीकार करें।" राम ने अपने मन्त्रियों से परामर्श कर विभीषण को सम्मान के साथ अपने पास बुला लिया। इससे हनुमान् आदि अपने पक्ष के सभी प्रमुख वीरों को बड़ी प्रसन्नता हुई। इतने में सीता का सहोदर भामंडल भी अपनी सेना सहित वहाँ पहुँच गया। राम ने उसका सस्नेह स्वागत-सत्कार किया। राम कुछ दिन अपने सहयोगियों तथा सेनाओं के साथ हंस-द्वीप में रहे । तदनन्तर लंका की दिशा में प्रस्थान किया। युद्धार्थ रावण की तैयारी लंका में रावण युद्ध की तैयारी में लगा था। कुंभकर्ण आदि उसके सभी प्रमुख सामन्त अपनी-अपनी सेनाओं के साथ उसके पास उपस्थित हुए। रावण के पास चार हजार अक्षौहिणी सेना थी। मेघनाद तथा इन्द्रजित् हाथी पर आरूढ हुंए । कुंभकर्ण अपने योद्धाओं के साथ ज्योतिप्रभ विमान में बैठा। वे सब युद्ध-भूमि की ओर रवाना हुए। ज्यों ही वे चले, भूकंप हुआ, अन्यान्य अपशकुन हुए। रावण ने उनकी कोई परवाह नहीं की। होनहार वैसा ही था। राम की सेना में जयमित्र, हरिमित्र, सबल, महाबल, रथवर्द्धन, रथनेता, दृढरथ, सिंहरथ, शूर, महाशूर, शूरप्रवर, सूरकान्त, सूरप्रभ, चन्द्राभ, चन्द्रानन, दमितारि, दुर्दान्त, देववल्लभ, मनोवल्लभ, अतिबल, प्रीतिकार, काली, शुभकर, सुप्रसन्न चन्द्र, कलिंगचन्द्र, लोल, विमल, गुणमाली, अप्रतिघात, सुजात, अमितगति, भीम, महाभीम, भानु, कील, महाकील, विकील तरंगगति, विजय, सुसेन, रत्नजटी, मनहरण, विराध, जलवाहन, वायुवेग सुग्रीव, हनुमान्, नल, नील, अंगद, अनल आदि योद्धा थे। विभीषण भी बहुत से विद्याधर योद्धाओं के साथ युद्धार्थ तत्पर थे। रामचन्द्र सबसे आगे-आगे चलते थे। रणभेरी बज रही थी। वानर सेना एक हजार अक्षौहिणी थी। सेनाओं के चलने से उड़ती धूल से सब ओर अन्धकार-सा छा गया। भीषण संग्राम युद्ध प्रारंभ हुआ। राक्षस सेना तथा वानर-सेना के योद्धा परस्पर एक-दूसरे से भिड़ गये। तरह-तरह के शस्त्रों से ससज्ज वानर-सेना के भीषण प्रहारों से राक्षस-सेना घबरा गई, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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