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________________ ४५२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ बहुत दुतकारा, फटकारा। सीता ने हनुमान् को, उसके सैन्य को वहाँ भोजन कराया, अपना गृहीत अभिग्रह पूर्ण होने से स्वयं भी भोजन किया। हनुमान् ने कहा-'माता ! यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं आपको अपने कन्धे पर बिठाकर राम के पास ले जाऊं।" __सीताबोली-"मुझे यह स्वीकार नहीं है; क्योंकि मैं पर-पुरुष का स्पर्श नहीं करती। सीता ने स्मति-चिह्न के रूप में राम को अर्पित करने हेतु अपनी चूड़ामणि हनुमान् को दी और कहा कि मेरी ओर से राम को प्रार्थनाक रें, वे शीघ्र यहाँ आएं।'' यह कहकर सीता ने हनुमान् को विदा किया। ज्यों ही हनुमान ने सीता को प्रणाम कर प्रस्थान किया, रावण द्वारा भेजे गये राक्षसों ने उन्हें घेर लिया। हनुमान् ने उद्यान के वृक्ष उखाड़-उखाड़ कर राक्षसों पर प्रहार किया, उन्हें भगा दिया। वानर के रूप में लोगों को त्रस्त करते हुए हनुमान्, जहाँ रावण था, उस ओर आगे बढ़ते गये। रावण ने देखा कि हनुमान् लंका को ध्वस्त-विध्वस्त कर रहे हैं तो उसने अपने योद्धाओं को हनुमान् का सामना करने की आज्ञा दी। रावण के पुत्र इन्द्रजित् और मेघनाद सेना सहित वहाँ पहुँचे और वे युद्ध में हनुमान से भिड़ गये। जब वे हनुमान् को नहीं रोक सके, नियंत्रित नहीं कर सके तो इन्द्रजित ने नागपाश द्वारा हनुमान् को बन्दी बना लिया और रावण के समक्ष उपस्थित किया। रावण ने हनुमान् को कड़े वचन कहे। हनुमान ने भी कड़े शब्दों में उसको प्रत्युत्तर दिया । रावण ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि इसे सांकलों से कसकर बाँध लो तथा सारे नगर में घुमाओ । हनुमान् अपने बल द्वारा पल भर में बन्धन मुक्त हो गये । उन्होंने रावण के सहस्रस्तंभपूर्ण भवन को मिट्टी में मिला दिया, विध्वस्त कर दिया। आकाश-मार्ग द्वारा चलकर शीघ्र ही किष्किन्धा आ गये । सुग्रीव ने उनका बड़ा सत्कार किया, सम्मान किया। वह उन्हें राम के पास ले गया। हनुमान् ने राम को सीता द्वारा प्रत्यभिज्ञान के रूप में प्रेषित चूड़ामणि दी। सीता का सन्देश कहा, सभी समाचार कहे, मार्ग का वृत्तान्त सुनाया। राम को परितोष हुआ। युद्ध की तैयारी : प्रयाण राम के मन में यह बहुत खटकता था कि उनकी पत्नी शत्रु के यहाँ है । लक्ष्मण ने सुग्रीव आदि योद्धाओं को बुलाया और कहा कि अब हम शीघ्र ही लंका पर चढ़ाई करें। सब रणक्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए तैयार होने लगे। राम ने सिंहनाद किया। उसे सुनकर उनकी सेना में सर्वत्र स्फूर्ति एवं उत्साह व्याप्त हो गया। मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी का दिन था। विजय योग था। शुभ शकुन हो रहे थे। राम सेना के साथ लंका की ओर चल पड़े। वे ऐसे प्रतीत होते थे, मानो चन्द्रमा तारों के समूह से घिरा हो। सुग्रीव, हनुमान्, नल, नील, तथा अंगद की सेना का सूचक चिह्न वानर था, भन्यान्य योद्धाओं के भी अपने अपने भिन्न-भिन्न चिह्न थे। चलते-चलते राम की सेना हंस-द्वीप पहुँची । भय से लंका में भगदड़ मच गई। राम की सेना का आगे बढ़ना जान कर रावण ने भी रणभेरी बजवाई। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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