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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
कथानुयोग - रामचरित : दशरथ जातक
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वीर तथा पराक्रमी था । उसने रावण की भी अधीनता नहीं मानी। उसे संसार से वैराग्य हुआ । उसने प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। तब सुग्रीव राजा हुआ। एक बार किसी विद्याधर ने सुग्रीव का रूप बना लिया । वह सुग्रीव की रानी तारा के पास आया। उसकी चेष्टाओं तथा प्रवृत्तियों से तारा को उसके सुग्रीव न होने का संशय हुआ । उसका उसे यह कपटपूर्ण रूप मालूम पड़ा । कपट- सुग्रीव राज्यासन पर आसीन हो बैठा । अब वास्तविक सुग्रीव आया तो दोनों में संघर्ष छिड़ गया। दोनों आपस में भिड़ गए। बड़ी कठिनाई थी। असली-नकली का भेद नहीं किया जा सका । रानी के शील की रक्षा का उत्तरदायित्व बालि के पुत्र चन्द्र रश्मि को सौंपा गया। असली सुग्रीव सहायता के लिए हनुमान् के पास गया। हनुमान को भी असली-नकली - दोनों सुग्रीव को देखकर संशय हो गया । इसलिए अब आपकी शरण में आया है । "
राम ने सुग्रीव से कहा - "तुम चिन्ता मत करो। तुम्हारा कार्य हम करेंगे। हमारे लिए इसे करना कुछ भी कठिन नहीं है, किन्तु, अभी हम उद्विग्न हैं ; क्योंकि किसी 'दुष्ट ने छल द्वारा सीता का अपहरण कर लिया है । यदि इस सम्बन्ध में तुम कुछ कर सको तो करो। सीता का पता लगाओ ।"
सुग्रीव ने कहा- "मैं सप्ताह भर में सीता का पता लगा दूंगा। ऐसा मुझे विश्वास है । यदि सप्ताह भर में यह कार्य नहीं कर सका तो मैं जीवित अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा।"
राम द्वारा साहसगति विद्याधर का वध
राम सुग्रीव के कथन से प्रसन्न हुए। वे उसके साथ किष्किन्धा गए। मकली सुग्रीव व असली सुग्रीव युद्ध में परस्पर भिड़ गए । उसी प्रसंग पर नकली सुग्रीव को मौत के घाट उतार देने की राम की योजना थी। पर, दोनों परस्पर बिलकुल एक जैसे थे, इसलिए राम को भी असली नकली का भेद ज्ञात नहीं रहा; अतः वे कुछ भी कदम नहीं उठा सके । दोनों का युद्ध चलता रहा । नकली सुग्रीव ने असली सुग्रीव पर गद्दा का प्रहार किया । असली सुग्रीव बेहोश हो गया। कुछ देर में उसे चेतना प्राप्त हुई । वह राम के पास आया और उपालंभ के स्वर में बोला - "आप पास में ही थे, आपने मेरी सहायता नहीं की।" राम बोले - " मैं भी तुम दोनों में असली-नकली का निश्चय नहीं कर सका । अब मैं सावधान हूँ, फिर वैसी भूल कभी नहीं होगी । मैं तुम्हारे शत्रु का शीघ्र ही वध कर डालूंगा ।" राम के तेज तथा प्रताप का नकली सुग्रीव पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसकी विद्या स्वतः नष्ट हो गई । उस द्वारा बनाया गया नकली रूप लुप्त हो गया। वह अपने वास्तविक रूप में आ गया । लोगों ने उसे साहसगति विद्याधर के रूप में देखा । साहसगति तथा सुग्रीव का फिर युद्ध छिड़ा । साहसगति विद्याधर के प्रहारों से सुग्रीव का वानर-दल टूटने लगा, साहसहीन जैसा प्रतीत होने लगा, तब राम ने साहसगति विद्यावर को पकड़कर मार डाला । सुग्रीव बहुत प्रसन्न हुआ । उसने राम और लक्ष्मण को किष्किन्धा के बगीचे में ठहराया। घोड़े, रत्न आदि उन्हें भेंट किए। फिर वह अपनी रानी तारा के पास आ गया । वह वहाँ सुख भोग में इतना विमोहित हो गया कि राम के समक्ष अपने द्वारा की गई प्रतिज्ञा को भी भूल गया । चन्द्रप्रभा आदि सुग्रीव की तेरह कन्याएँ पति का वरण करने के लिए राम के समक्ष आई, नृत्य करने लगीं। राम सीता के विरह में बहुत
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