SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४८ आगम और त्रिपिटक : एक अनूशीलन [खण्ड: ३ तुम्हारे जैसा पति प्राप्त होने पर भी स्वीकार नहीं करती या सती शिरोमणि है, जिसके लिए पर-पुरुष मात्र त्याज्य है। किन्तु, तुम-बल प्रयोग भी तो कर सकते हो।" रावण ने कहा“मेरा अनन्त वीर्य नामक मुनि के पास व्रत स्वीकार किया हुआ है कि मैं किसी भी स्त्री पर बल प्रयोग नहीं करूंगा । मैं यह नियम कदापि खंडित नहीं कर सकता । मैं तुम्हारे पास इसलिए आया हूँ, मेरी इच्छा-पूर्ति में कुछ मदद कर सको। कुछ उपाय सोचो।" पति का कथन सनकर मन्दोदरी दूती का कार्य करने सीता के पास आई। वह उसे तरह-तरह से फुसलाने लगी। रावण को स्वीकार करने का अनुरोध करने लगी। सीता ने उसे फटकारते हए कहा-'कोई भी सती नारी किसी स्त्री को इस प्रकार की शिक्षा दे, जरा सोचो, उचित है क्या ? जो तुम कर रही हो, क्या तुम्हारे योग्य कार्य है ?" मन्दोदरी लज्जित होकर बोली-"जो तुम कहती हो, बिलकुल यथार्थ है, किन्तु, क्या किया जाए, पति के प्राण बचाने के लिए अनुचित काम भी करना पड़ता है।" इस प्रकार मन्दोदरी अपने प्रयत्न में सर्वथा असफल रही। तब रावण स्वयं सीता के पास आया। उसने सीता को तरह-तरह से समझाया, लालच दिए, मय दिखलाये, सिंह, प्रेत, राक्षस आदि के रूप बनाकर उसे डराया, किन्तु, सीता पर इनका कोई प्रभाव नहीं हुआ। सवेरे विभीषण को यह सब मालूम हुआ, तब वह सीता के पास आया और उसे आश्वासन देकर बोला---'मैं रावण को समझाऊंगा, तुमको राम के पास भिजवाने का प्रयत्न करूंगा।" वह रावण के पास आया और बोला--"दूसरे की स्त्री का अपहरण करना बड़ा अनथं है, अत्यन्त अनुचित है । सीता को उसके पति राम के पास वापस लौटाकर इस अनर्थ से आप अब भी बच सकते हैं।" रावण ने विभीषण की एक न सुनी। पुष्पगिरि पर्वत पर रावण का अपना सुन्दर उद्यान था । वह सीता को पुष्पक विमान में बिठाकर उस उद्यान में ले गया । नृत्य, गीत, वाद्य आदि द्वारा सीता को प्रसन्न करने की उसने बहत चेष्टा की, पर, उसकी ये चेष्टाएँ सर्वथा निष्फल सिद्ध हुई। सीता का अभिग्रह सीता ने एकान्त स्वीकार किया। उसने यह अभिग्नह किया कि जब तक राम, लक्ष्मण के कुशल-क्षेम के समाचार उसे नहीं मिलेंगे, उसे अन्न खाने का सर्वथा त्याग है। रावण के पास जब यह समाचार पहुँचा, तब वह सीता के विरह में पागल की ज्यों चेष्टाएं करने लगा। किष्किन्धापति सुग्रीव : राम के साथ मैत्री लक्ष्मण द्वारा खरदूषण के मारे जाने के बाद राम लक्ष्मण के शौर्य और पराक्रम का सर्वत्र कीर्तिमान होने लगा। किष्किन्धा के राजा का नाम सुग्रीव था। उसने भी यह सुना। वह दुःखी था । अपना दुःख दूर करने के लिए वह पाताल-लंका गया। उसके साथ जाम्बवंत नामक उसका मंत्री तथा और लोग भी थे। राम ने सुग्रीव का कुशल-समाचार पूछा । मंत्री जाम्बवंत ने उसका परिचय देते हुए राम को बताया-"किष्किन्धा के राजा आदित्यरथ का यह पुत्र है । इसका नाम सुग्रीव है। इसके बड़े भाई का नाम बालि था। बालि बहुत बड़ा ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy