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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-रामचरित : दशरथ जातक सीता की खोज
राम ने सब जगह सीता की खोज की, पर, उसका कोई पता नहीं चला।
इधर रणक्षेत्र में विराध नामक विद्याधर लक्ष्मण के समीप आया। वह विद्याधर चन्द्रोदर तथा अनुराधा का पुत्र था। पाताल-लंका पर उसके पिता का राज्य था। खरदूषण ने चन्द्रोदर से राज्य छीन लिया। स्वयं राजा हो गया। इस प्रकार खरदूषण के साथ उसका शत्रु भाव था । इसलिए वह लक्ष्मण के सेवक के रूप में युद्ध करने में जुट गया। खरदूषण ने लक्ष्मण को युद्ध के लिए ललकारा। लक्ष्मण ने उसकी ललकार स्वीकार की। खर दूषण लक्ष्मण पर खड्ग का वार करने ही वाला था कि लक्ष्मण ने चन्द्रहास खड्ग से उसका मस्तक काट डाना । खरदूषण के मरते ही उसकी सेना छिन्न-भिन्न हो गई। लक्ष्मण विजयी हुआ। वह विराध के साथ राम की सेवा में पहुँचा।
लक्ष्मण को वहाँ सीता दिखलाई नहीं दी। उसने सारी घटना सुनी । अत्यन्त दु:खित हुआ। सीता की खोज के लिए विराध को भेजा। विराध खोज करते-करते आगे बढ़ा। उसको रत्नजटी नामक एक विद्याधर मिला। जब रावण सीता को लिए जा रहा था, तब उसने उसको देखा। रावण का घोर विरोध किया। रावण ने उसकी विद्याएँ नष्ट कर दी। वह बेहोश होकर कम्बुशैल पर्वत पर गिर पड़ा। समुद्री हवा से जब उसे होश आया, तब उसने विराध को रावण द्वारा सीता के हरे जाने का समाचार बताया। विराध वापस राम के पास आया। सब समाचार कहे तथा यह सुझाव दिया कि आप पाताल-लंका पर अधि. कार करें। उसने यह बताया कि पाताल-लंका पर उसके पिता का राज्य था। पाताल-लंका पर अपना अधिकार हो जाने से सीता को प्राप्त करने में सुगमता होगी। टिकाव के लिए सुदृढ केन्द्र अपने हाथ में होगा। राम, लक्ष्मण विराध के साथ रथ पर चढ़कर पाताल लंका गए। वहाँ चन्द्रनखा का पुत्र शम्ब राज्य करता था। उन्होंने शम्ब को जीत लिया तथा पाताललंका पर अधिकार कर लिया।
रावण का व्रत
रावण जब सीता को लिए जा रहा था, तब उसे प्रसन्न करने के लिए उसने अनेक प्रकार के प्रलोभनपूर्ण वचन कहे, किन्तु, सीता ने उसे बुरी तरह फटकारते हुए हताश कर दिया । तथापि वह उसे लंका में ले गया और वहाँ स्थित देवरमण नामक उद्यान में रखा।
रावण राजसमा में गया, बैठा । चन्द्रनखा अपनी भाभी मन्दोदरी आदि को साथ लेकर वहां आई। वह रावण से कहने लगी-"मेरा पुत्र शम्बूक मार डाला गया, मेरा पति खरदूषण मार डाला गया । आप जैसे परम पराक्रमी भाई के रहते यह सब हो गया, बड़ा दुःख है।" रावण बोला-"बहिन ! होनहार प्रबल होती है, उसे कोई टाल नहीं सकता। कोई किसी की आयु न कम कर सकता है, न अधिक कर सकता है। किन्तु तुम धीरज धारण करो, मैं तुम्हारे शत्रु से बदला लूंगा कुछ ही दिनों में उसे यमलोक पहुँचा दूंगा।"
बहिन को ढाढ़स बँधाकर रावण महारानी मन्दोदरी के पास आया। मन्दोदरी ने उससे पूछा- “स्वामिन् ! तुम इतने उदास क्यों हो?" रावण बोला- मैंने सीता का अपहरण तो कर लाया, पर, मुझे वह अंगीकार नहीं करती। उसको पाये बिना मेरा हृदय विदीर्ण हो जायेगा, मैं मर जाऊंगा।" मन्दोदरी बोली-"या तो सीता अत्यन्त मूर्ख है, जो
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