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________________ ४४६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ यह दुर्दशा कर डाली है। मैं किसी प्रकार अपने पुण्य-बल द्वारा अपने सतीत्व की रक्षा कर यहाँ लौटी हूँ ।” खरदूषण द्वारा आक्रमण यह सुनकर खरदूषण बहुत ऋद्ध हुआ । उसने अपने चवदह हजार योद्धाओं को साथ लिया और दण्डकारण्य पहुँचा । उसने लंका में अपना दूत भेजकर रावण को भी सहायता हेतु आने की सूचना करवाई । राम ने यह देखा, अपना धनुष सम्भाला । लक्ष्मण ने कहा - "मेरे रहते, आपको युद्धार्थ जाने की आवश्यकता नहीं है। उनसे मैं निपट लूंगा । आप सीता की रक्षा करें । आवश्यकता होने पर यदि मैं सिंहनाद करूं तो आप मेरी सहायता के लिए आ जाएं ।" यों कहकर लक्ष्मण ने युद्धार्थ प्रस्थान किया । रावण द्वारा सीता का हरण अपनी बहन चन्द्रनखा की पुकार पर रावण पुष्पक विमान द्वारा वहाँ पहुँचा । राम के पास बैठी सीता पर जब उसकी दृष्टि पड़ी तो वह उसके सौन्दयं पर मुग्ध हो गया । उसे अवलोकिनी विद्या सिद्ध थी । विद्या-बल से उसने लक्ष्मण का संकेत जान लिया । तदनुसार उसने लक्ष्मण के स्वर में स्वयं सिंहनाद किया । राम ने समझा, लक्ष्मण मेरी सहायता चाहता है । उन्होंने जटायुध से कहा - " मैं लक्ष्मण की सहायता हेतु जा रहा हूँ, तुम सीता की रक्षा करना ।" राम के वहाँ से चले जाने पर रावण सीता का हरण कर लिया। जटायुध गीध ने रावण को रोका। उसके साथ संघर्ष किया— उस पर, प्रहार कर उसे घायल कर दिया। पर, रावण के सामने बेचारे उस पक्षी को कितनी ताकत थी । रावण ने जटायुध को बुरी तरह पीट-पीट कर जमीन पर गिरा दिया। जटायुध का शरीर चूर-चूर हो गया। रावण ने सीता को जबर्दस्ती पुष्पक विमान में बिठा लिया और विमान उड़ाए ले चला । सीता तरह-तरह से विलाप कर रोने लगी, बिलखने लगी, मानो उस पर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा हो । रावण ने सोचा- इस समय यह दुःखित है, रो रही है, पर जब यह मेरा वैभव, प्रताप तथा समृद्धि देखेगी तो स्वयं मेरे अनुकूल बन जायेगी । मेरे द्वारा जो यह व्रत लिया हुआ है कि मैं किसी स्त्री पर बल का प्रयोग नहीं करूंगा, उसे ( उस व्रत को ) अविचल और अखण्ड रखूंगा । जब राम रणक्षेत्र में लक्ष्मण के पास पहुँचे, तब लक्ष्मण बोला - "आप सीता को छोड़कर यहाँ क्यों आ गये ?" राम ने कहा- "तुमने ही तो सिंहनाद किया था, जिसका अर्थ मुझे बुलाना था, तो फिर मैं कैसे नहीं आता ।" लक्ष्मण बोला- “हमारे साथ धोखा हुआ है। आप शीघ्रातिशीघ्र वापस लौटें। सीता की रक्षा करें।" राम उन्हीं पैरों वापस आए, पर, वहाँ सीता नहीं मिली। वे चेतना शून्य होकर भूमि पर गिर पड़े। कुछ देर में जब उन्हें होश आया, तो मरणासन्न जटायुध ने उनको रावण के आने, सीता का अपहरण करने, अपने द्वारा संघर्ष करने की सारी बात कही। राम ने देखा, जटायुध के प्राण निकलने वाले हैं। राम ने उसे दयार्द्र- हृदय होकर नवकार मंत्र सुनाया । जटायुध मरकर देवता हुआ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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