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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-रामचरित : दशरथ जातक ४३१ आया, उसे अपनी अश्वशाला में रख लिया। एक महीना व्यतीत हुआ, एक दिन राजा उस घोड़े पर सवार होकर वन में घमने गया। घोड़ा राजा जनक को लिए ऊंचा उड़ गया और आकाश-मार्ग द्वारा उसे रथनपूर नगर ले गया, अपने राजा चन्द्र गति के समक्ष हाजिर किया। चन्द्रगति ने राजा जनक से भामंडल के लिए सीता को देने हेतु प्रस्ताव रखा। जनक ने कहा-"अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र रामचन्द्र के साथ सीता का सम्बन्ध निश्चित हो चका है; अत: अब कैसे तोड़ा जा सकता है।
विद्याधर चन्द्रगति द्वारा शर्त
विद्याधर बोला-"हम गनचारी विद्याघरों के साथ भूचारी मानवों की क्या गिनती है। खैर, हम एक शर्त रखते हैं, हमारे यहाँ कल-परंपरा से वज्रावर्त तथा अर्णवावर्त नामक दो धनुष हैं । हम उनकी पूजा करते हैं । एक हजार यक्ष उनकी रक्षा करते हैं। राम इन में से किसी एक को चढ़ा दे तो हम अपने को परास्त मान लेंगे। आप सीता उन्हें दे सकेंगे अन्यथा उसे विद्याधर ले आयेंगे।"
विद्याधरों ने राजा जनक को मिथिला पहुँचा दिया। राजा जनक बहुत खिन्न था। उसने अपनी रानी वैदेही से सारी बात कही। रानी बहुत चिन्तित हुई, क्या होगा, कैसे होगा ? सीता ने अपने माता-पिता से कहा-"आप कुछ चिन्ता न करें। राम निश्चय ही धनुष चढ़ा सकेंगे, वे ही वर होंगे, विद्याधरों को अपनी प्रतिष्ठा से हाथ धोकर जाना पड़ेगा।"
मिथिला नगरी के बाहर धनुष-मंडप का निर्माण किया गया। विद्याधरों ने दोनों धनुष स्वयंवर-मंडप में लाकर रखे ।
रामचन्द्र द्वारा धनुरारोपण : सीता के साथ विवाह
अयोध्या-नरेश दशरथ मिथिला आ गए। मेघप्रभ, हरिवाहन, चित्ररथ आदि और भी अनेक राजा वहाँ पहुँचे। राजागण मंडप में उत्तम आसनों पर आसीन हुए। सीता अपनी धात्री मां के साथ मंडप में आई। धात्री मां ने उसे सनागत राजाओं का परिचय दिया । जनक के मंत्री ने घोषित किया कि जो देवाधिष्ठित धनुष चढ़ा सकेगा, उसी के साथ सीता का पाणिग्रहण होगा। मंत्री द्वारा किया गया आह्वान सुनकर राजा घबरा गये, धनुष को चढ़ा देने का किसी को साहस नहीं हआ। अतूल बलशाली रामचन्द्र सिंह के समान उठे, समीप आए, उन्होंने तत्क्षण अनायास वज्रावर्त धनुष को चढ़ा दिया । धनुष की टंकार का जो शब्द उठा, उससे सहसा पथ्वी काँप उठी। पर्वत हिलने लगे। शेषनाग काँप गया। हाथी बाँधने के खंभे उखड़ गए । मदमस्त हाथी भाग छूटे। कुछ देर में वातावरण प्रशान्त हुआ। देवताओं ने आकाश में दुंदुभि बजाई, पुष्प-वर्षा की। सीता अत्यन्त प्रफुल्लित हुई, राजा के समीप आ गई । दूसरा धनुष अर्णवावर्त लक्ष्मण ने चढ़ाया। राम और सीता का विवाहोत्सव सानन्द सम्पन्न हुआ। विद्याधर हर्षित हुए। उन्होंने अपनी अठारह कन्याएं लक्ष्मण को ब्याहीं। समागत सभी लोग अपने-अपने स्थानों को लौट गए। राजा जनक ने अयोध्यानरेश दशरथ को विपूल संपत्ति, वैभव, आभरण आदि मेंट किए। दशरथ अपने पुत्रों तथा परिजनों के साथ अयोध्या लौट आए।
___ महाराज दशरथ बड़े धार्मिक थे, श्रावक-धर्म का पालन करते थे। एक बार उन्होंने अष्टाह्निक महोत्सव का आयोजन किया। अपनी सभी रानियों को उत्सव में बुलाया।
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