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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
सीता का जन्मोत्सव
उधर जब मिथिला की रानी वैदेही ने पुत्र को नहीं देखा तो वह अत्यन्त दुःख-पूर्वक विलाप करने लगी, मच्छित हो गई। राजा जनक ने उसे किसी तरह समझाकर, सान्त्वना देकर, धीरज बंधाकर शान्त किया। पूत्री का जन्मोत्सव आयोजित किया। उत्सव अत्यन्त आनन्दोत्सव के साथ सम्पन्न हुआ। कन्या का नाम सीता रखा गया। राजकुमारी सीता का पांच धात्रियां पालन करने लगी। वह क्रमशः बड़ी होने लगी। वह रूप, लावण्य तथा गुणों में अनुपम थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो राजा जनक ने उसके लिए योग्य वर ढूंढने हेतु अपने अमात्य को भेजा।
वरकी खोज
अमात्य वर की खोज में गया। कुछ समय बाद वापस लौटा। उसने राजा जनक से कहा-'अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र हैं-कौशल्या-नंदन रामचन्द्र, सुमित्रानंदन लक्ष्मण तथा कैकेयी के पुत्र भरत तथा शत्रुघ्न । इसमें रामचन्द्र के साथ सीता का सम्बन्ध करना समुचित होगा। मंत्री का सुझाव राजा दशरथ को सर्वथा संगत लगा। राजा ने अपने कर्मचारियों को महाराज दशरथ की सेवा में अयोध्या भेजा। उन्होंने जनक की भावना राजा दशरथ के समक्ष रखी। दशरथ ने राम और सीता का सम्बन्ध स्वीकार कर लिया। राजकर्मचारी वापस आए। उनसे समाचार सुनकर राजा जनक बहत प्रसन्न हुआ। सीता भी उस सम्बन्ध से परितुष्ट थी।
नारद की दुरभिसन्धि
एक दिन का प्रसंग है, सीता को देखने नारद मुनि राजा जनक के यहाँ आये। सीता ने जब उनका भयावह रूप देखा तो वह डर गई, भागकर महल में चली गई। नारद मुनि तब उधर पीछे-पीछे जाने लगे तो दासियों ने उनका अपमान किया। द्वारपाल ने उनको बाहर निकाल दिया।
नारद मुनि उस घटना से बहुत क्रोधित हुआ। वे सीधे वैताड्य पर्वत पर गए। वहाँ रथनूपुर नगर के राजा विद्याधर चन्द्रगति के यहाँ पहुँचे। उन्होंने सीता का एक चित्र तैयार किया, उसे राजकमार भामंडल को दिखाया। भामंडल सीता पर मोहित हो गया। नारद मुनि से उसका परिचय पूछा। उन्होंने बताया। भामंडल में सीता को प्राप्त करने की उत्कंठा जागी। वह उदास एवं चिन्तित रहने लगा। जब राजा चन्द्रगति को भामंडल की मन:स्थिति के सम्बन्ध में ज्ञात हुआ तो उसने भामंडल को समझाया और उसकी इच्छा पूर्ण करने का आश्वासन दिया। चन्द्रगति ने सोचा कि यदि राजा जनक से भामंडल के लिए सीता की सीधी मांग करूंगा तो संभव है, राजा अस्वीकृत कर दे। वैसा होना मेरे लिए अप
नजनक होगा। इसलिए उसने निश्चय किया कि युक्ति तथा चतुराई से काम लेना चाहिए। उसने चपल गति नामक विद्याधर को छलपूर्वक राजा जनक को अपने यहाँ ले आने को भेजा।
जनक का अपहरण
चपलगति विद्याधर ने घोड़े का रूप धारण किया। वह मिथिला गया। घोड़ा बहुत सुन्दर तथा शुभ लक्षण युक्त था। राजा जनक ने उसे देखा। राजा को घोड़ा बहुत पसंद
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