________________
तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
कथानुयोग-राचरित : दशरथ जातक
४२६
पुत्र का अपहरण
पूर्व-जन्म के शत्रुभाव के कारण एक देव पुत्र को अपहृत कर ले गया।
महाराज श्रेणिक ने गणधर गौतम से देव के बैर का कारण पूछा तो उन्होंने बताया
चक्रपुर नामक नगर था। वहां के राजा का नाम चक्रवर्ती था। रानी का नाम मदन सुन्दरी था। उनके एक पुत्री थी, जो अत्यन्त रूपवती थी। वह लेखशाला-पाठशाला में अध्ययन करती थी। तब पुरोहित मधुपिंगल के साथ उसका प्रेम-सम्बन्ध हो गया। मधुपिंगल उसे लेकर विदर्भापुरी ले गया, जहाँ वे दोनों सुख-पूर्वक रहने लगे। कुछ दिन बाद संयोगवश ऐसा घटित हुआ, मधुपिंगल अपनी अजित विद्या भूल गया । द्रव्य-उपार्जन बन्द हो गया । उसे बड़ा दुःख हुआ।
एक बार विदर्भा के राजकुमार अहिण्डल की उस सुन्दरी पर दष्टि पडी। वह उस पर मोहित हो गया, उसे अपने महल में ले गया। मधुपिंगल को जब अपनी स्त्री नहीं मिली तो वह राजा के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचा। राजा से प्रार्थना की कि मेरी स्त्री का अपहरण हो गया है, उसकी खोज कराई जाये। टालने की दृष्टि से राजकुमार अहिकुण्डल के किसी समर्थक ने कह दिया-मैंने उसे पोलासपुर में एक साध्वी के पास देखा है।
___मधुपिंगल उसकी खोज में पोलासपुर गया। वह वहाँ नहीं मिली। वह वापस विदर्भा आया। राजा के पास जाकर फिर फरियाद की, विवाद करने लगा। राजा ने उसे अपने कर्मचारियों द्वारा पिटवाकर नगर से बाहर निकलवा दिया।
मधुपिंगल ने सोचा--मैं निरपराध हूँ, फिर भी इस राजा ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया है। यह संसार ऐसा ही है, इसमें कष्ट ही कष्ट है। यों सोचते हुए मधुपिंगल को वैराग्य हो गया। वह साधु बन गया। तपश्चर्या में रत रहने लगा। मरकर स्वर्ग गया।
भामंडल
राजकुमार अहिकुण्डल ने आगे चलकर धर्म का श्रवण किया। वह साधुओं का सत्संग करता रहा। उनसे उपदिष्ट एवं प्रेरित होकर उसने सदाचार का जीवन बिताया। वह मरकर जनक की रानी वैदेही की कोख से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। मधुपिंगल के जीव ने, जो स्वर्ग में देव के रूप में था, अपना पूर्व-जन्म का वैर स्मरण कर उसे अपहृत कर लिया। देव ने सोचा कि शिला पर पछाड़ कर उसकी हत्या कर दूं, पर, जब वह ऐसा करने को उद्यत हुआ तो उसके मन में करुणा का संचार हो गया, जिससे वह वैसा न कर सका। देव ने उस बालक को कुण्डल पहनाए, हार पहनाया और वैताढ्य पर्वत पर छोड़ दिया। उधर से निकलते हुए चन्द्रगति नामक विद्याधर की उस बालक पर दृष्टि पड़ी। विद्याधर ने उस बालक को तत्क्षण वहाँ से उठा लिया और उसे अपने यहां ले गया। उसने अपनी पत्नी अंशुमती को उसे सौंप दिया। यह प्रसिद्ध कर दिया कि स्त्री के गढ़ गर्भ था, अब उसने पूत्र को जन्म दिया है।
विद्याधरों ने चन्द्र गति से पुत्रोत्पत्ति के उपलक्ष में उत्सव का आयोजन किया। इस बालक का नाम भामंडल रखा गया। वैताढ्य पर्वत पर विद्याधर चंद्रगति के घर उसका लालन-पालन होने लगा।
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org