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________________ ४२८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ नहीं हो पाया। अतएव प्रमुख घटनाओं की मात्र सांकेतिकता जैन घटनाक्रम के अनुगत है, जो यहाँ उपस्थापित दोनों कथनाकों की तुलना से स्पष्ट है। राम चरित श्रेणिक की जिज्ञासा : गौतम द्वारा उत्तर ___ एक समय की बात है, भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी श्रमण गौतम राजगह नगर में पधारे । महाराज श्रेणिक तथा जन-परिषद् उनके दर्शन एवं उपदेश-श्रवण हेतु एकत्र हुई। गौतम ने परिषद् को धर्म-देशना देते हुए अठारह पापों से सदा बचते रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने प्रसंग-वश बताया कि साधुओं पर मिथ्या-कलंक लगाने से सीता की तरह घोर दुःख झेलना पड़ता है।। महाराज श्रेणिक ने गणघर गौतम से इस सम्बन्ध में जिज्ञासा की। गौतम ने सीता के पूर्व-भव से लेकर उसका समस्त जीवन-वृत्तान्त परिषद् को बतलाया। सीता का पूर्व-भव भरत क्षेत्र में मृणालकन्द नामक नगर था । वहाँ श्रीभूति नामक पुरोहित निवास करता था। उसकी पुत्री का नाम वेगवती था। एक बार वहाँ सुदर्शन नामक त्यागी, वैरागी, प्रतिभाधारी मुनिवर का पदार्पण हुआ। नगर के सभी लोग उन्हें वन्दन-नमन करने उनके सामने गए। उनके निर्मल, संयममय जीवन तथा उपदेशों की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। वेगवती मिथ्यादृष्टि थी । मुनि की प्रशंसा उसे रुची नहीं। लोगों की दृष्टि में मुनिवर को गिराने हेतु वह उनके विरुद्ध झूठा प्रचार करने लगी। वह कहने लगी-"यह साधु बड़ा पाखंडी है । मैंने इसको एक नारी के साथ ब्रह्मचर्य-भग्न करते हुए देखा है।" बुरी बात बड़ी जल्दी फैलती है। वेगवती द्वारा यों प्रचार किए जाने से लोग मनि की सर्वत्र निन्दा, कट आलोचना करने लगे। बात मनि तक पहुँची। झठे कलंक तथा धर्म की निन्दा से उनको बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने यह संकल्प किया, जब तक यह झूठा कलंक नहीं उतरेगा, तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा, कायोत्सर्ग में संलग्न रहूंगा। तदनुसार उन्होंने अन्न-जल लेना छोड़ दिया। शासन देवी के प्रभाव से वेगवती का मुंह शोथ से फूल गया । वह अत्यन्त पीड़ा-ग्रस्त हो गई। वह मन-ही-मन अपने कुकृत्य के लिए पश्चात्ताप करने लगी। उसने प्रकट में लोगों को बता दिया कि मैंने मुनि पर झूठा कलंक लगाया है। मुनि सर्वथा निर्दोष हैं । यह जानकर सब लोग हर्षित हुए। वेगवती स्वस्थ हुई। उसने यथासमय धर्मोपदेश सुना, धर्म अंगीकार किया। वह अपना आयुष्य पूर्णकर, काल-धर्म प्राप्त कर प्रथम स्वर्ग में देव के रूप में उत्पन्न मिथिला में जनक के घर कन्या एवं पुत्र का जन्म भरतक्षेत्र में मिथिला नामक नगरी थी। वह अत्यन्त धन्य-धान्य-सम्पन्न तथा समद्ध थी। वहाँ जनक नामक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी एवं दानशील था। उसकी पत्नी का नाम वैदेही था। वेगवती का जीव स्वर्ग का आयुष्य पूर्ण कर वैदेही की कोख से कन्या के रूप में उत्पन्न हुआ। एक-दूसरे जीव ने उसकी कोख से पुत्र के रूप में जन्म लिया। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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