SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग–अर्जुन मालाकार : अंगुलिमाल ४२५ ने डंडा फेंका । डंडा उसके लगा, वह आहत हुआ। किसी ने उस पर कंकड़ फेंके । यों उसके पूर्ववर्ती दस्यु-जीवन को याद कर कर लोग उस पर प्रहार करते ही गये । अंगुलिमाल लहू-लुहान हो गया। उसका सिर फट गया, पात्र भग्न हो गये, चीवर फट गये। वह, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। भगवान् ने अंगुलिमाल को दूर से ही उस हालत में आते हुए देखा। उसे संबोधित कर उन्होंने कहा-"ब्राह्मण ! तुमने अंगीकार कर लिया, अंगीकार कर लिया। जिन कर्मों के फल के परिपाक के लिए सैकड़ों वर्ष, सहस्रों वर्ष नरक में दुःख झेलने पड़ते, ब्राह्मण ! उस कर्म-विपाक को तुम इसी जन्म में अंगीकार कर रहे हो, कर्म-फल को भोग रहे हो।" ध्यान-रत, विमुक्ति-सुख, उद्गार आयुष्मान् अंगुलिमाल एकान्त में ध्यान-रत हुआ। उसे विमुक्ति-सुख की अनुभूति होने लगी। उस समय उसके मुख से ये उद्गार निकले-"जो पहले अर्जन करता है, कर्म संगृहीत करता है, फिर उनका मार्जन कर डालता है, उन्हें मिटाकर अपने को स्वच्छ बना लेता है, वह पुरुष, जैसे बादलों से मुक्त चन्द्र अपनी प्रभा फैलाता है, उसी प्रकार लोक को प्रभामय, उद्योतमय बनाता है। "जिसके द्वारा किये गये पाप-कृत्य--अकुशल-कर्म पुण्य-कृत्यों द्वारा आवृत हो जाते हैं, जिसके पाप-कर्मों का स्थान पुण्य-कर्म ले लेते हैं, जो पापी के स्थान पर पुण्यात्मा बन जाता है, बादलों से मुक्त चन्द्र जैसे अपनी प्रभा फैलाता है, उसी प्रकार वह पुरुष उस लोक को प्रभामय, उद्योतमय बनाता है। "जगत में जो यूवा भिक्ष बुद्ध-शासन में तन्मय रहता है, जड़ा रहता है, बादलों से मक्त चन्द्रमा जैसे अपनी प्रभा फैलाता है, उसी प्रकार वह इस लोक को प्रभामय, उद्योतमय बनाता है। "मेरे धर्मोद्गार ये दिशाएँ सुनें, दिक् स्थित लोग सुनें । वे बुद्ध-शासन से अपने को जोड़ें। धर्म-प्रेरक संतजन दिशाओं का सेवन करें-तद्वर्ती लोगों को उत्प्रेरित करें उद्बोधित करें। "दिशाएँ शान्तिमय धर्म को सुनें, सेवन करें।" "जो सब प्रकार की हिंसा से विरत होगा, वह परम शान्ति प्राप्त करेगा। वह सभी जंगम-गतिशील, स्थावर-स्थितिशील प्राणियों की रक्षा करेगा। "जिनके पास नाली होती है, वे जल को सीधा ले जाते हैं, इषु कार-बाण बनाने वाले बाण को सीधा करते हैं, काष्ठकार काष्ठ को-लड़की को सीधा करते हैं, वैसे ही ज्ञानी पुरुष अपने को सीधा करते हैं, दमित करते हैं। "कोई डण्डे द्वारा, कोई हथियार द्वारा, कोई कोड़े द्वारा दमन करते हैं, किन्तु, भगवान् तथागत ने मेरा किसी डण्डे के बिना, हथियार के बिना दमन किया है। "कभी मैं हिंसक के रूप में विख्यात था। विकराल बाढ़ में डूबते हुए पुरुष की ज्यों मैं भगवान बुद्ध की शरण में आया। "पहले मैं रक्तरंजित हाथों वाला अंगुलिमाल था। भगवान् की शरण में आने का कितना उत्तम फल हुआ, मेरा भव-चक्र, संसार का जंजाल मिट गया। "मैंने ऐसे बहुत से कुकर्म किये, जो दुर्गति में ले जाने वाले हैं । कर्म करने के नाते मैं ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy