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________________ ४२४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ "भन्ते ! अब आज्ञा कीजिए, हम जाना चाहते हैं, हमारे अन्य अनेक कार्य हैं, जो हमें करने हैं।" भगवान् ने कहा - "राजन् ! जैसा ठीक लगे, करो।" राजा प्रसेनजित् आसन से उठा, भगवान् को अभिनमन किया, प्रदक्षिणा की और वहाँ से चला गया। अंगुलिमाल की करुणा आयुष्मान् अंगुलिमाल ने प्रथम प्रहर के समय अपने चीवर धारण किये, पात्र लिये, वह भिक्षा के लिए श्रावस्ती में प्रविष्ट हुआ। भिक्षार्थ घूमते हुए आयुष्मान् अंगुलिमाल ने एक स्त्री को देखा, जो मूढगर्भा-विघातगर्भा थी--जिसका गर्भ पेट में मर धुका था । वह बड़ी दुःखित एवं पीड़ित थी। अंगुलिमाल को यह देखकर बड़ा कष्ट हुआ। वह सोचने लगा-हाय ! इस जगत् में प्राणी कितने दुःखित हैं, पीडित हैं, । अगालिम अंगलिमाल श्रावस्ती में भिक्षा-ग्रहण कर, आहार कर, वापस जहाँ थे, वहाँ आया। भगवान् को अभिवादन, वन्दन नमन कर एक तरफ बैठा और उसने भगवान् से कहा--"भन्ते ! जब मैं प्रथम प्रहर में भिक्षा हेतु श्रावस्ती में गया तो मैंने एक मूढगर्भा महिला को देखा-वह बड़ा दुःख पा रही है।" मूढागर्भा का कष्ट-निवारण भगवान् बोले-"आयुष्मान् अंगुलिमाल ! तुम वहां जाओ, जहाँ वह स्त्री है। वहाँ जाकर तुम उससे कहो-"बहिन ! यदि मैंने जन्म से लेकर अब तक जान-बूझकर प्राणियों का वध नहीं किया हो तो इस सत्य के प्रभाव से तुम्हारा, तुम्हारे गर्भ का मंगल हो।" अंगुलिमाल ने कहा- "भन्ते ! यदि मैं ऐसा कहूं तो यह असत्य-भाषण होगा। भन्ते ! मैंने तो जान-बूभ कर अनेक प्राणियों की हत्या की है।" भगवान् फिर बोले- अंगुलिमाल ! जैसा मैं कहता हूँ, तुम वैसा ही करो। तुम उस स्त्री के पास जाकर कहो-बहिन ! यदि मैंने आर्य-जन्म में उत्पन्न होकर--आर्य-कुल में जन्म लेकर, जान-बूझकर प्राणियों का वध नहीं किया हो तो तुम्हारा मंगल हो, तुम्हारे गर्भ का मंगल हो।" अंगुलिमाल बोला-'अच्छा भन्ते ! मैं ऐसा हो करूंगा।" वह उस स्त्री के पास आया और उसने वैसा ही कहा। फलत: स्त्री का दु:ख मिट गया, गर्भ का कष्ट मिट गया। अहंतों में एक __ आयुष्मान् अंगुलिमाल-प्रमाद रहित हो संयम की आराधना करता हुआ विहार करता रहा । उसने अनवरत साधना द्वारा सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मचर्य-फल का इसी जन्म में साक्षात्कार कर लिया। उसका ब्रह्मचर्य-पालन सघ चूका, जन्म-मरण की परम्परा क्षीण हो गई, जो करणीय था, वह कृत हो गया। वह अर्हतों में एक हुआ । कर्म-विपाक एक दिन की बात है, प्रथम प्रहर में अंगुलिमाल चीवर धारण कर भिक्षा हेतु श्रावस्ती में गया। किसी ने उस पर पत्थर फेंका । पत्थर उसकी देह पर लगा। किसी दूसरे ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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