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तत्व : आचार : कथानुयोग]
कथानुयोग -अर्जुन मालाकार : अंगुलिमाल
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प्रसेनजित् का उसर
राजा प्रसेन जित् बोला-"भन्ते ! यदि ऐसा हो तो हम प्रत्युत्थान करेंगे, उन्हें देख स्वागतार्थ उठेंगे। उन्हें आसन, वस्त्र, भोजन, आस्तरण-औषधि आदि ग्रहण करने हेतु आमन्त्रित करेंगे। उनके धर्मनिष्ठ जीवन के संरक्षण की व्यवस्था करेंगे, किन्तु, भन्ते ! अंगुलिमाल जैसे दूषित शीलयुक्त, पापयुक्त पुरुष को ऐसा शील, ऐसा संयम कहाँ से प्राप्त होगा?"
तथागत द्वारा अंगुलिमाल का परिचय
उस समय आयुष्मान् अंगुलिमाल भिक्षु के रूप में भगवान् के निकट बैठा था । भगवान ने उसकी दाहिनी बाँह को पकड़ा और राजा प्रसेनजित् को बतलाया- "राजन् ! यही अंगलिमाल है।"
राजा प्रसेनजित् ने उसकी ओर देखा, भयभीत हुआ, हक्का-बक्का रह गया। उसके रोंगटे खड़े हो गये।
तब भगवान् ने राजा प्रसेनजित् को आश्वस्त करते हुए कहा-"राजन् ! अब भय मत करो, अब भय करने का कोई कारण नहीं है।"
प्रसेनजित् और अंगुलिमाल का संलाप
___भगवान् के मुख से यह सुनकर राजा प्रसेनजित् के मन में जो भय उत्पन्न हुआ था, जो स्तब्धता हुई थी, रोमांच हुआ था, वह सब मिट गया। राजा, जहाँ आयुष्मान् अंगुलिमाल था, वहाँ गया और जा कर कहा -''आप आर्य अंगुलिमाल हैं ?"
अंगुलिमाल बोला- "हां राजन् ! मैं अंगुलिमाल हूँ।"
प्रसेनजित् ने पूछा-"आर्य ! आपके पिता किस गोत्र के थे ? माता किस गोत्र की थी?"
अंगुलिमाल ने उत्तर दिया- 'मेरे पिता गार्यगोत्रीय थे तथा माता मैत्रायणीगोत्रीया थी।"
प्रसेनजित् कहने लगा --"आर्य गार्य-मैत्रायणी-पुत्र अंगुलिमाल ! आप सुख से रहें। मैं आपकी वस्त्र, भोजन, आसन, आस्तरण, औषधि आदि द्वारा सेवा करना चाहता हूँ।"
आयुष्मान् अंगुलिमाल ने तब उन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं समझी। वह आवश्यक साधन युक्त था। उसने महाराज प्रसेनजित् से कहा-"राजन् ! मेरे तीनों चीवर विद्यमान हैं, परिपूर्ण हैं । मुझे अभी और कुछ नहीं चाहिए।"
तब राजा प्रसेनजित् वहाँ से उठा, जहाँ भगवान् तथागत थे, वहाँ आया, भगवान् को वन्दन-नमन किया। वन्दन-नमन कर वह एक ओर बैठ गया। बैठ कर भगवान् से निवेदन करने लगा--"भन्ते ! बड़ा आश्चर्य है, बड़ी विचित्र बात है, जिनका दमन किया जाना शक्य नहीं है, उन्हें आप दमित करते हैं, दम युक्त बनाते हैं, जो अशान्त है, उन्हें शान्त बनाते हैं, जो परिनिर्वाण-विमुख हैं, उन्हें परिनिर्वाणोन्मुख बनाते हैं, जिनका हम दण्ड द्वारा, हथियार द्वारा दमन नहीं कर सके उनका आपने बिना दण्ड, बिना शस्त्र दमन
किया।
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