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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
दीनता, विमनस्कता, कलुषता, आकुलता एवं खिन्नता का अनुभव नहीं करता । उसे ग्रहण करता, उसमें आत्म-तोष मानता।
भगवान् को पर्युपासना
वह भिक्षा लेकर राजगृह से निकलता, गुणशील चैत्य में, जहाँ भगवान् महावीर अवस्थित थे, आता । वहाँ भगवान् से न अति दूर, न अति समीप उपस्थित होकर, गमनागमनसम्बन्धी प्रतिक्रमण कर, भिक्षाचर्या में ज्ञात-अज्ञात रूप में आचीर्ण दोषों की आलोचना कर भिक्षा में प्राप्त आहार-पानी भगवान् को दिखलाता । उन की आज्ञा प्राप्त कर वह मूर्छा, आसक्ति और राग-रहित हो आहार-पानी ग्रहण करता । जिस प्रकार सर्प अपने बिल में सीधा प्रवेश कर जाता है, उसी प्रकार वह भोजन का कवल आस्वाद रहित और मोह रहित भाव के साथ सीधा अपने गले में उतार लेता। यही उसका दैनन्दिन क्रम था।
तदनन्तर भगवान् महावीर राजगृह नगर के उपकण्ठवर्ती गुणशील नामक चैत्य से विहार कर गये, जनपदों में विचरण करने लगे।
समाधि-मरण
अनगार अर्जुन ने उदार, उत्कृष्ट, उत्तम एवं पवित्र भाव से गहीत अत्यन्त कल्याणकर, श्रेयस्कर तपश्चरण द्वारा आत्मा को अनूभावित करते हुए-आत्मा का अभ्युदय एवं उन्नयन साधते हुए छः मास पर्यन्त श्रमण-पर्याय का-साधु-जीवन का परिपालन किया। फिर पन्द्रह दिवसीय संलेखना-अनशन के साथ उसने समाधि-मरण प्राप्त किया। जिस कार्य को साधने हेतु निर्ग्रन्थ-जीवन स्वीकार किया था, उसे साध लिया। उसने सिद्धत्व, बुद्धत्व, मुक्तत्व प्राप्त कर लिया।'
अंगुलिमाल रक्त-रंजित दस्यु अंगुलिमाल
एक समय का प्रसंग है, भगवान् तथागत अनाथ पिण्डिक के जेतवन नामक उद्यान में प्रवास करते थे। उस समय राजा प्रसेनजित् के राज्य में अंगुलिमाल नामक दस्यु था। वह बडा भयानक था। उसके हाथ सदा रक्त-रजित रहते थे। वह रात-दिन मार-काट में लगा रहता था। प्राणियों के प्रति उसके मन में जरा भी दया नहीं थी। उसने गाँवों को उजाड डाला, निगमों को उजाड़ डाला, जनपद को उजाड़ डाला।
तथागत का अन गमन
एक दिन की घटना है, प्रथम प्रहर का काल था। भगवान् तथागत ने चीवर धारण किये, हाथ में पात्र लिया भिक्षा के लिए श्रावस्ती में प्रवेश किया। श्रावस्ती में भिक्षा ग्रहण की, आहार किया, अपना आसन, पात्र चीवर सम्भाले। उसी मार्ग की ओर चल पड़े, जिधर डाकू अंगुलिमाल रहता था । वालों, चरवाहों, किसानों तथा पथिकों ने भगवान् को उधर जाते देखा। उन्होंने भगवान् से कहा-"श्रमण ! इस मार्ग पर मत जाओ। इस मार्ग में आगे अत्यन्त भयावह, खुन से रंगे हाथों वाला, निरन्तर मारकाट में लगा, अति निर्दय अंगुलि
१. आधार-अन्तकृद्दशा सूत्र, षष्ठ वर्ग, तृतीय अध्ययन ।
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