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४१८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: ३ सुदर्शन के समक्ष आकर खड़ा हो गया और निनिमेष दृष्टि से उसे दीर्घ समय तक निहारता रहा।
मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुन मालाकार को विप्रमुक्त कर दिया-वह उसके शरीर से निकल गया और सहस्रपलपरिमाणोपेत लोह-मुद्गर को लिये उसी दिशा में चला गया, जिस दिशा से आया था।
अर्जुन मालाकार यक्ष से छूटते ही धड़ाम से पृथ्वी पर गिर पड़ा, बेहोश हो गया।
श्रमणोपासक सुदर्शन ने देखा, उपसर्ग दूर हो गया है, तब उसने अपनी प्रतिमा पारित की-अपना व्रत परिसम्पन्न किया।
भगवत् दर्शन की उत्सुकता
कुछ समय बाद अर्जुन मालाकार आश्वस्त हुआ, यथावत् रूप में स्वस्थ हुआ और सुदर्शन से बोला- "देवानुप्रिय ! तुम कौन हो? कहाँ जा रहे हो ?"
सुदर्शन ने कहा- 'मैं सुदर्शन नामक श्रमणोपासक हूँ। जीव, अजीव आदि नौ तत्त्वों का मैंने ज्ञान प्राप्त किया है । गुणशील चैत्य में भगवान महावीर विराजित हैं, मैं उनको वन्दन करने, उनकी भक्ति करने वहाँ जा रहा है।" __अर्जुन मालाकार बोला-"देवानुप्रिय ! मैं भी चाहता हूँ, तुम्हारे साथ चलूं, भगवान्
र को वन्दन-नमन करूँ, उसका सत्कार-सम्मान करूं। वे कल्याणमय, मंगलमय एवं दिव्यतामय हैं। उनकी पर्युपासना करूँ।"
सुदर्शन बोला-'देवान प्रिय ! जिससे तुम्हें सुख हो, वैसा करो, विलम्ब मत
करो।"
भगवान के दर्शन-वन्दनार्थ जाने में अर्जुन की उत्सुकता बढ़ी। सुदर्शन उसे साथ लिये गुणशील चैत्य में आया, जहाँ भगवान् महावीर विराजित थे। उसने अर्जुन मालाकार के साथ भगवान् को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा कर वन्दन किया, नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार कर कायिक, वाचिक व मानसिक रूप से पर्युपासना की। कायिक पर्युपासना के रूप में हाथ-पैरों को संकुचित किये हुए-सिकोड़े हुए, शुश्रूषा--सुनने की इच्छा करते हुए, नमस्कार करते हुए, भगवान् की ओर मुंह किये, विनय से हाथ जोड़े हुए स्थित रहा। वाचिक पर्युपासना के रूप में जो भगवान् बोलते थे, उनके लिए यह ऐसा ही है भन्ते ! यही तथ्य है भगवन् ! यही सत्य है प्रभो! यही सन्देह रहित है स्वामिन् ! यही इच्छित है भन्ते ! यही प्रतीच्छित - स्वीकृत है प्रभो ! यही इच्छित-प्रतीच्छित है भन्ते ! जैसा आप कह रहे हैं । इस प्रकार अनुकूल वचन बोलता रहा । मानसिक पर्युपासना के रूप में अपने में अत्यन्त संवेग-मोक्षोपयुक्त भाव उत्पन्न करता हुआ तीव्र धर्मानुराग से अनुरजित रहा।
भगवान् द्वारा धर्म-देशना : अर्जुन द्वारा प्रव्रज्या
भगवान् महावीर ने श्रमणोपासक सुदर्शन, अर्जुन मालाकार तथा महती-विशाल परिषद् को धर्मोपदेश दिया। सुदर्शन भगवान् का उपदेश श्रवण कर अपने घर लौट गया।
अर्जुन मालाकार भगवान् महावीर की धर्म-देशना सुन कर अत्यन्त उल्लसित तथा हर्षित हुआ । चित्त में आनन्द एवं प्रसन्नता का अनुभव करता हुआ, अत्यन्त सौम्य मानसिक भावों से युक्त तथा हर्षातिरेक से आह्लादित हुआ। श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार
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