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तत्त्व : आचार : कथानुयोग]
कथानुयोग–अर्जुन मालाकार : अंगुलिमाल
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स्वच्छ, प्रावेश्य-सभा में धारण करने योग्य मांगलिक वस्त्र पहने, हलके, किन्तु, बहुमूल्य आभूषण धारण किये। घर से पैदल ही निकला। राजगृह नगर के बीचो-बीच होता हुआ मुद्गरपाणि यक्ष के आयतन से न अति दूर न अति समीप-थोड़ी ही दूर से निकलता हुआ। गुणशील चत्य की ओर जाने लगा, जहाँ भगवान् महावीर विराजित थे।
यक्षाविष्ट मालाकार का कोप
__ यक्षाविष्ट अर्जुन मालाकार ने सुदर्शन को उधर से निकालते हुए देखा। वह भीषण क्रोध, रोष एवं कोप की ज्वाला से जल उठा, सहस्रपल परिमाणोपेत भारयुक्त लोह-मुद्गर को घुमाने लगा तथा सुदर्शन की ओर आगे बढ़ने लगा । सुदर्शन की उस पर नजर पड़ी। उसे अपनी ओर आता हुआ देखा। उसके हाथों उसे अपनी मृत्यु संभावित लगी, किन्तु, वह जरा भी भयभीत त्रस्त, उद्विग्न और क्षुब्ध नहीं हुआ। वह तो प्रभु महावीर का उपासक था, आत्मा के अमरत्व में विश्वस्त था, भयाक्रान्त क्यों होता ? वह आत्मस्थ रहा ।
सुदर्शन द्वारा सागार अनशन का स्वीकार
सुदर्शन ने निर्भीक भाव से अपने वस्त्र के अंचल द्वारा भूमि का प्रमार्जन किया। पूर्व दिशा की ओर मुख किया। भूमि पर बंठा अपने अंजलिबद्ध हाथों से मस्तक को छूता हुआ बोला-"अब तक जितने अर्हत् हो चुके हैं, सिद्धत्व प्राप्त कर चुके हैं, मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ। मोक्षोद्यत , तीर्थकर प्रभु महावीर को नमस्कार करता हूँ।
___"मैंने अब से पूर्व भगवान् महावीर से स्थूल प्राणातिपात-हिंसा, स्थूल मृषावाद असत्य तथा स्थल अदत्तादान-चौर्य का प्रत्याख्यान, स्वपत्नी संतोषमूलक काम-संयम और इच्छा-परिमाण-परिग्रह के सीमाकरण का व्रत जीवन भर के लिए स्वीकार किया था। अब मैं उपस्थित उपसर्ग को दृष्टि में रखता हुआ सापवाद रूप में उन्हीं श्रमण भगवान् महावीर के साक्ष्य से हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य तथा परि ग्रह का सम्पूर्णरूप में प्रत्याख्यान करता हूँ। क्रोध, मान- अहंकार, माया-छल-प्रवंचना, लोभ, प्रेम-अप्रकट माया व लोभजनित प्रिय या रुचिगम्य भाव, द्वेष-अव्यक्त मान व क्रोध-प्रसूत अप्रिय या अप्रीतिरूप भाव कलह लड़ाई-झगड़ा, अभ्याख्यान -मिथ्या दोषारोपण, पैशुन्य-चुगली, किसी के होतेअनहोते दोषों का पीठ पीछे प्राकट्य, पर-परिवाद-निन्दा रति-मोहनीय कर्म के उदय के परिणाम-स्वरूप असंयताचरण में सुख-मान्यता-रुचिशीलता, अरति-मोहनीय कर्म के उदय के परिणाम-स्वरूप संयम में अरुचिशीलता, मायामृषा-माया या छलपूर्वक असत्यभाषण एवं मिथ्यादर्शन शस्त्र--मिथ्यात्वरूप कंटक का जीवन भर के लिए प्रत्याख्यान करता हूँ।
___ “यदि मैं इस उपसर्ग से बच गया तो इस प्रत्याख्यान का परिपारण कर आहार आदि ग्रहण करूँगा। यह मुझे कल्प्य है।" उपस्थीयमान उपसर्ग को देखते हुए सुदर्शन ने सागार प्रतिमा-सापवाद अनशन स्वीकार किया।
मालाकार का पराभव : उपसर्ग का अपगम
यक्षाविष्ट मालाकार अर्जुन वहाँ आया। सुदर्शन के चारों ओर घूमता रहा, किन्तु, अपने तेज से वह उसे अभिभूत नहीं कर सका, न उस पर प्रहार ही कर सका। तब वह
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