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________________ ४१४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ टोकरी लेकर अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ घर रवाना हुआ। नगर के बीचो-बीच होता हुआ अपने पुष्पोद्यान में आया । अपनी पत्नी के साथ वह चुन-चुन कर खिले हुए फूल तोड़ने लगा, उन्हें एकत्र करने लगा। उस समय 'ललिता' टोली के छः पुरुष मुद्गरपाणि यक्ष के आयतन में आये हुए थे, हंसी-खुशी में मशगूल थे। कुत्सित भावना अर्जुन मालाकार तथा उसकी पत्नी ने फूल इकट्ठे किये। उनमें से कुछ उत्तमोत्तम फूल छाँटे । अपने नित्य-नियम के अनुसार मालाकार अपनी पत्नी के साथ यक्षायतन की ओर रवाना हुआ। जब उन छःओं पुरुषों ने अर्जुन को अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ आते देखा तो उनके मन में यह कुत्सित भाव जगा कि यह बड़ा अनुकूल अवसर है, हम अर्जुन माली को पकड़ लें, उसके दोनों हाथ पीठ पीछे बलपूर्वक बाँध दें, उसे एक तरफ लुढ़का दें और बन्धुमती के साथ अपनी काम-पिपासा शान्त करें। ऐसा निश्चित कर वे छःओं व्यक्ति यक्षायतन के कपाटों के पीछे छिप गये, चुपचाप खड़े हो गये। अर्जुन मालाकार अपनी पत्नी के साथ आया, यक्षायतन में प्रविष्ट हुआ। प्रतिमा यक्ष की ओर भक्तिपूर्ण दृष्टि से निहारा, अच्छे से अच्छे फूल, जो उसने छाँटे थे, यक्ष का चढ़ाये, अपने दोनों घुटने भूमि पर टिकाये, बड़े आदर एवं श्रद्धा से यक्ष को प्रणाम किया। बलात्कार : कुकर्म अर्जुन मालाकार इस प्रकार यक्ष की पर्युपासना में संलग्न था, वे दुष्ट पुरुष कपाटों के पीछे से निकले । अपने दूषित संकल्प के अनुसार अर्जुन मालाकार को धर दबाया। उसके दोनों हाथों को उसकी पीठ पीछे कसकर बाँध दिया। उसे एक ओर पटक दिया। ऐसा कर उन्होंने उसकी पत्नी बन्धुमती के साथ कुकर्म किया। अर्जुन माली का क्षोभ : उद्वग अर्जुन मालाकार के देखते-देखते यह कुकृत्य दुर्घटित हुआ। वह अत्यन्त दुःखित पीड़ित तथा उद्विग्न हुआ। वह शोकाग्नि से जलता हुआ मन-ही-मन कहने लगा-मैं अपने बाल्यकाल से ही भगवान् मुदगरपाणि को अपना इष्टदेव मानता आया हूं, प्रतिदिन भक्ति. पूर्वक उसकी पूजा-अर्चा करता आया हूँ। छंटे हुए उत्तमोत्तम पुष्प उसे चढ़ाने के बाद ही मैं फूलों की बिक्री करता रहा हूँ, अपनी आजीविका चलाता रहा हूँ । यदि यह मुद्गरिपाणि यक्ष वास्तव में यहाँ होता तो क्या वह मेरी ऐसी दुर्गति देख पाता? प्रतीत होता है, मुद्गर पाणि यक्ष यहां विद्यमान नहीं है । मात्र एक काठ का पुतला है । यक्ष द्वारा अर्जुन की देह में प्रवेश : हत्या मुद्गरपाणि ने अर्जुन मालाकार के इन हृद्गत मावों को जाना। वह मालाकार के शरीर में प्रविष्ट हुआ। यक्ष की अपरिमेय शक्ति मालाकार की देह में आ गई। थोड़ा-सा जोर मारते ही बन्धन तड़ातड़ टूट गये । अर्जुन मालाकार विकराल हो गया। उसने वह भारी लोह-मुद्गर, जो यक्ष-प्रतिमा के हाथ में था, उठाया। उसने उन छःओं दुःशील पुरुषों को ललकारा-"पापियो ! अपने पाप का फल भोग लो।" यह कहकर लौह-मुद्गर के दुर्धर, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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