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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-~अर्जुन मालाकार : अंगुलिमाल ४१३ अजुन मालाकार अजुन एवं बन्धुमती भरत क्षेत्र के अन्तर्गत मगध नामक जनपद था। राजगृह नामक नगर था । वहाँ गुणशील चैत्य था। राजगृह मगध जनपद की राजधानी थी। वहाँ श्रेणिक नामक राजा राज्य करता था। राजगृह में अर्जुन नामक मालाकार निवास करता था। वह सम्पन्न, सुप्रतिष्ठ एवं प्रमावशील था। उसकी पत्नी का नाम बन्धुमती था। वह बहुत सुन्दर, सुकुमार और सौम्य थी। राजगह से बाहर अर्जन मालाकार का एक विशाल पूष्पाराम-फलों का उद्यान वह हरा-भरा था, पंच रंगे फूलों से सुशोभित था । वह बड़ा सुहावना, मनोहर, दर्शनीय, अभिरूप-मनोज्ञ-मन को अपने में रमा लेने वाला तथा प्रतिरूप-मन में रम जाने वाला था। मुद्गरपाणि उस पुष्पोद्यान से न अधिक दूर और न अधिक समीप-कुछ ही दूरी पर मुद्गर. पाणि नामक यक्ष का आयतन था । अर्जुन मालाकार वंश-परंपरा से, पीढ़ियों से अपने पूर्व पुरुषों से चले आते क्रम से उससे सम्बद्ध था । वह यक्षायतन पूर्णभद्र दैत्य की ज्यों प्राचीन, दिव्य तथा प्रभावापन्न था। उसमें मुद्गरपाणि यक्ष की मूर्ति थी। उसके हाथ में एक सहस्र पल-परिमाण भार-युक्त लोहे का भारी मुद्गर था। पूजा-अर्चना अर्जुन मालाकार बाल्यावस्था से ही मुद्गरपाणि यक्ष का भक्त था । वह हर रोज अपनी बांस की टोकरी लेकर राजगृह नगर के बाहर अपने उद्यान में जाता, चुन-चुन कर फूल तोड़ता, एकत्र करता। उन फूलों में से उत्तमोत्तम फूलों को छांटता, अपने इष्टदेव मुद्गरपाणि यक्ष के आगे चढ़ाता, भक्ति-पूर्वक उसकी पूजा करता, अर्चना करता, अपने दोनों घुटने भूमि पर टिकाकर उसे प्रणाम करता। उसके बाद वह राजमार्ग पर आता, एक किनारे बैठ जाता, अपने फल बेचता। अपनी आजीविका उपाजित करता। ललित गोष्ठी एक गोष्ठी-मित्र-मंडली थी। वह ललिता' नाम से विख्यात थी। शायद उसका इसलिए यह नाम रहा हो कि वह लालित्य - बाह्य सौन्दर्य में, सारस्य में, मौज-मजे में, हास्य-विनोद में समय बिताने वाले अल्हड लोगों की टोली थी। उसके सदस्य धन-धान्य सम्पन्न थे, प्रभावशाली थे। नगर में उनका भारी दबदबा था। कभी किसी प्रसंग पर उन्होंने राजा का कोई प्रिय, अभीप्सित कार्य कर दिया था, जिस पर प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें अभयदान की बख्शीश की थी। इससे वे निर्भय और स्वच्छन्द थे। जैसा मन में आता, करते, कौन रोकता। राजा का संरक्षण जो प्राप्त था। उत्सव - एक दिन का प्रसंग है, राजगृह में एक उत्सव मनाये जाने की घोषणा हुई। कल उत्सव का दिन है, फूलों की भारी मांग होगी, यह सोचकर अर्जुन मालाकार बांस की ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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